Wednesday, July 22, 2015

' दस रूपये में ख़ुशी '

उसे देखा है मैंने खुशियाँ पकाते ! जैसे कोई पुकारता हो - ले लो , ले लो , दस रुपये में खालिश ख़ुशी ! एक के एक के साथ एक एकदम मुफ्त !
बात यों  है कि उस दिन वो जो कार रुकी थी ना रेड लाइट पर. वो मचल उठी -
ज़रा विंडो रोल डाउन  करो तो।
अरे अभी नहीं, कितना पॉल्यूशन है यहाँ !
मगर मुझे बलून लेना है. जल्दी  ग्रीन लाइ ....
बलून का तुम क्या करोगी ? किट्टू तो अब गुब्बारों से खेलता नहीं , तुम्हे चाहिए क्या ?
जिद्द करके उसने दो बलून खरीद ही लिए थे।  बलून बेचने वाली बच्ची की दो बलून बेच पाने की खुशी को वह तब तक  आँखों से पीती रही जब तक ट्रेफिक फिर से चालू हो कर उस ठहरी हुई दुनिया से कार वालों की तेज़ रफ़्तार की दुनिया शीशा चढ़ा कर आगे न बढ़ गयी !
मगर कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती।
नारायण चौराहे पर पहुँचते हुए उसने उन्हें कार साइड में रोकने को कहा।
अब क्या हुआ ?
अरे रोको तो ! ( उसने दूर से ही मोड़ पर फुटपाथ पर खेलते दो बच्चों को देख  लिया था। )
कार के रुकते रुकते उसने शीशा नीचे कर लिया और हाथ बढ़ा कर वो दो बलून उन बच्चों को पकड़ा दिया था !
गियर  चेंज करते हुए वे देख रहे थे दस रुपये में डबल ख़ुशी कैसे मिलती है !
                                                      ---------------- मुखर !


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