Wednesday, November 30, 2016

"Hesokuri" ...(A japanese term)


एक बार की बात है। मेरी एक सहेली की शादी पक्की हो गई थी। एक दिन जब मैं उनके घर गई ,उसकी फूफी आईं हुई थी और एक बड़े से बक्से के आस पास बहुत सी चीजें बिखेरे घर की सब महिलाएं बैठी थीं। वह बक्सा 6 x 3 का बेडनुमा था जिसपर हमेशा गद्दा चादर बिछा सोफे का लुक दे रखा था। उस दिन पता चला कि जब से मेरी सहेली पैदा हुई थी तब ही से उस बक्से में चीजें , कपड़े , ज़ेवर , और नकदी बस डाली ही जाती थी , निकाली नहीं। ऑन्टी ने उसके लिए तभी से एक दुप्पट्टे पर फुलकारी भी काढ़नी शुरू कर दी थी। पुराने ज़माने के चाँदी के बर्तन , काँसे के गिलास , थालियां , सोने के तारों की बारीक काम वाली एक ओढनी , कितनी सुंदर साड़ियां, हाथ की कढ़ाई वाले चद्दरें , गिलाफ़ , मेजपोश और भी ना जाने क्या क्या और बहुत बहुत सारा नकद। यह लेख पढ़ने वाली लगभग सभी महिलाओं व् कुछ पुरुषों को भी अपना बहुत कुछ याद आ गया होगा। जहाँ तक मुझे ध्यान है करीना कपूर ने शादी में अपनी सास शर्मीला टैगोर का शादी- का- जोड़ा पहना था। तो जोड़ना तो हम भारतीय महिलाओं के जीन्स में है।
1978 में जब हजार और दस हज़ार के नोट बंद किये गए थे , धन्ना सेठों व् नेताओं के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई थी। उस समय केंद्रीय सरकार के क्लर्क की सैलरी अमूमन 250/- रुपये होती थी। गाँवों कस्बों में तो बहुत से काम जुबान की कीमत पर और/या वास्तु विनिमय पर हो जाया। ' गुरु जी ' के यहाँ विद्यार्थियों के अभिभावक नाज , घी , गुड़ के पीपे, बोरे डलवाते। गाय, भैंस, भूमि का टुकड़ा तक दान देते थे।
सत्तर अस्सी के दशक में कई जगह देखने में आता जब घर पर कोई बड़ी विपत्ति आई या घर , जमीन , मवेशी खरीदने की बात अटकती तो घरवाली परिस्थिति को भांपते हुए कोई पुरानी सी गठरी खोल एक मोटी रक़म जमा पूंजी के रूप में पकड़ाती।
आज भी हम महिलाओं के पास ऐसी कहानियाँ मिल जाएँगी जिसमें शराबी पति से छुपाकर कामवाली अपनी पूँजी 'मालकिन ' के पास रखवाती है कि कभी बुरे वक़्त में काम आएगा। सौ सौ के चार पाँच नोट होते ही पापा से पाँच सौ के नोट से बदलवा अपने गुल्लक में डालना आज भी बेटियों की आदत में है। और आड़े वक़्त में वही गुल्लक फोड़कर जब पापा को देती हैं तो पापा मम्मी को आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी होती है बड़ी रकम और बिटिया की समझदारी पर। 1985 में गैस कनेक्शन के लिए फॉर्म भरना था तब मैंने भी अपना गुल्लक फोड़ा था।
परसों किटी में वो भी आई जिसे किटी फालतू की दिखावे की होड़ और वक़्त की बर्बादी लगती थी। पूछा तो बोली , "सतरंगी सपनों की इंद्रधनुषी बचत अचानक से कोयला हो गई। अल्पव्यता , दांत से पैसे पकड़ना , देखकर चलना , भविष्य पर नज़र रखना आदि नाम से जो मेरे पति ,मेरी सास गुण गाते थे , अचानक ही से वो मेरे सब गुण सबसे बड़े अवगुण हो गए।"
पिछले साल भर में हमने करीब दो -तीन खबरें ऐसी भी पढ़े जब किसी भिखारी ने जिंदगी भर की कमाई दान में दे 'डिस्पेंसरी ' , तो कभी 'शौचालय ' तो कभी 'विद्द्यालय भवन ' तक बनवाया। अजमेर के रेलवे स्टेशन पर जब एक लावारिस लाश के बिछावन से कितने लाख रुपये निकले थे तो जाने कहाँ कहाँ से उससे रिश्ते के दावेदार पैदा हो गए थे।
तो क्या आपको नहीं लगता कि ये सारी जमा पूँजी वर्षों की बचत है ना की काली कमाई ? काली कमाई वालों की बात और है। उनके घर की महिलाएं बचत नहीं करतीं। वे सपरिवार उड़ाती हैं। महिलाएं ही नहीं , पुरुष भी , बच्चे भी।
खा खा कर, पी पी कर तोंदल के जब सारे ऑर्गन फेलियर हो रहे हैं तो पेट दर्द की शिकायत करती आवाम को बड़ी बिमारी का डर दिखा आपरेशन कर दिया ? चुपके से उसकी किडनी उड़ा ली ? महंगी इलाज के बहाने मोटी फीस भी ऐंठ लिए ? अहसान और कि गंभीर बीमारी से बचाया है ! तीन महीने का बेड रेस्ट भी ?
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