Tuesday, October 9, 2018

"इज्ज़त" - ( प्रतिलिपि पर "कथा सम्मान प्रतियोगिता" में ) - Link has been updated.

गुड्डे गुड़ियों के खेल हो या छोटे- छोटे खिलौने वाले बर्तन लेकर रसोई-रसोई,सरोज को कभी नहीं भाते थे . वह तो जब देखो तब दौड़ कर पिताजी के पास खेतों में पहुँच जाती , लपक कर अमरुद या आम के पेड़ पर चढ़ जाती , दूर से ढेला फेंक खेत चुगती चिड़िया उड़ाती या फिर छोटे भाई महेश के पतंग की गिट्टी पकड़ते- पकड़ते फिर पतंग ही उड़ाने लगती . अभी उम्र ही क्या थी सो दद्दू और पिताजी उसकी हरकतों पे हंस लेते थे . मगर गाँव भर की औरतें रूप -रंग की तारीफ करती- करती कब उपालंभ भरी चिकौटी काटती कि सरोज की अम्मा बिलबिला जाती .

“ तेरहवीं में लग गई तू , अब ये लहंगा कमीज के संग दुपट्टा ही डाल लिया कर !लड़कों के स्कूल जाती है, जरा लोक- लाज का लिहाज कर !”

“हाँ हाँ” करती नटखट सरोज पिताजी और दद्दू का टिफ़िन उठा ये चली वो चली !”

“अरी किधर चली ? खाना महेश दे आएगा , तू जरा मेरे संग मसाले कुटवा ले ! या छोरी तो सुनअ ही कोनी !”

सत्रह की होते- होते तो सरोज खेत का सारा काम सँभालने लगी थी . ट्रेक्टर से रुड़ाई- गुड़ाई, फसलों की कटाई और बंधाई , गाय बैलों का चारा- सानी , दूध दुहना...क्या नहीं करती ! हाँ , रसोई में कभी नहीं बड़ती !खाना जीम कर थाली एक तरफ सरका देती ! पढाई में भी कम होशियार नहीं थी . दसवीं की परीक्षा के बाद प्रधानध्यापक खुद आए थे सरोज के पिताजी से मिलने . “ बहुत अच्छे नंबरों से पास हुई है आपकी बिटिया , आगे की पढाई के लिए क्या सोचा ? मेरी मानो तो कोई डॉक्टर-इंजिनियर से कम न है अपनी सरोज !”

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https://hindi.pratilipi.com/story/%E0%A4%87%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A5%9B%E0%A4%A4-kkcvcY1ZspKR

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