Tuesday, September 6, 2016

वो मिठास कहाँ गई ...

वही मौसम है.... वही सड़कें हैं। ..और ऍफ़ एम पर बजते वही गानें। ... मग़र। .. न बारिश में वो रिमझिम है ना राहों में वो कशिश। ऍफ़ एम पर बजते उन्हीं गीतों में से मेलॉडी इस बार ग़ायब है। पिछली बरस ... याद है ? शहर का आसमान घटाघुप्प हो रहा था कि सौंधी सी एक याद दिल में छम से उतर आई थीं । ... मैंने झट से गाड़ी की चाबी उठाई और चल दी थीं उस ओर जिधर आसमान का एक कोना काला और काला हुआ जाता था । ... आधुनिक शहर की सीधी सपाट सड़कें भी आढ़ी टेढ़ी सी कल्पनाओं की ओर ले जातीं थीं मुझे। ... रिम झिम गिरे सावन ... मैंने रेडियो का वॉल्यूम कुछ और बढ़ा दिया था। ... तस्वीरें बदल रहीं थीं।
बॉम्बे का मरीन ड्राइव ? मग़र वहाँ तो मैं कभी गई नहीं न ? ओ यू जस्ट शट अप ! रीता भादुड़ी की जग़ह मैं भीग रही थी ? और मैंने देखा मैंने अमिताभ को ऐसा धक्का दिया कि... कि.....उफ़्फ़ ये फोन. .. 

"हलो ! हाँ ? तुम पहुँच गए घर ? अच्छा। करीब आधा घंटा। ठीक है। समोसे ? ले आउंगी। ... अब के सजन सावन में ...
वही मौसम है.... वही सड़कें हैं। ..और ऍफ़ एम् पर बजते उन्हीं गीतों में इस बार अज़ीब सा शोर है... सब ओर । ये कैसी बूंदे हैं कि सब सूखा सूखा ... गीत , मैं , मेरा मन ... अपने ही में खोई खोई मैं कार की खिड़की ज़रा खोल दी कि बग़ल से जाती सिटी बस से सड़क का बरसाती पानी उछल कर मुझे भिगो गया। छीsss ! मैं भी ना। इन्हीं को बोल देती सब्ज़ी लाने को । फ़ोन ! इनका फोन ? हम्म ! याद करो और ...
"हलो ! बारिश तेज़ है , गाड़ी धीरे और ध्यान से चलाना। अवॉयड खातीपुरा चौराहा। ट्रैफिक जाम है जबरदस्त। इंस्टीड टेक सर्विस लेन। अरे ! तुम आ गई ? तुम तो बारिश में लॉन्ग ड्राइव पे निकलती हो ना !..... अच्छा , गेट खोलता हूँ ...
- " मुखर "