Tuesday, March 27, 2018

सुनहरी दोपहरी

हालाँकि जम्मू और हिमाचल में बर्फबारी हुई है और सुबह की ठंडक बाकी है परन्तु मरुस्थल में आते सूरज की किरणें जेठ सी चमकीली हो गई है! अभी दिन के बारह भी नहीं बजे हैं और फिजां में दोपहर की गंभीरता पसर गई है।
पॉश इलाके की इस कॉलोनी में ऊँचे बड़े बंगले खड़े खड़े ऊँघ रहे हैं और साफ़ सुथरी सड़कें अलसा रही हैं। अनगिनत लोगों की यह बस्ती है मग़र दिखता कोई नहीं। निर्जन सी दोपहर की नीरवता और मंद मंद पवन मुझे बालकनी की तन्हाई में खींच लाते हैं। छोटे बड़े सभी वृक्ष ज्यों थोड़ी थोड़ी देर में उनींदी करवट लेते हिलते हैं... सड़क की दोनों ओर पंक्ति बद्ध अशोक पर नए जवान पानीदार पत्ते बूढ़े पत्तों को हाशिये पर धकेल नव वर्ष के आगमन पर नई छटा अब तक बिखेर रहे हैं। ये सीटी ! किसने मारी? अहा! बिजली के ऊँचे तार पर अंगूठे भर की एक नीली चमकीली नन्ही चिड़िया! इसकी चोंच भी सुई सी पूंछ भी! दो पीली तितलियाँ पल भर में कहीं से आ कहीं को छू! मेरी नजर नचा गईं, मुस्कान दे गईं... बता गईं कि बसंत अभी बस गया ही है...
नजदीक ही कहीं से हैमर ड्रिल की तीखी आवाज और ठक ठक... ह्म्म! शहर के बसावट की जड़ें इतिहास में कहीं दबी पड़ी है और निर्माण अभी जारी है। फिर भी... इस मौसम में कमठे की आवाज भली लगती है, जाने क्यों!  ओह्ह फ़ोन!
"जी भैया!"
"रात की बस है, दस बजे! टिकिट ले लूँ?"
"जी भैया! जी।"
मरुस्थल में आठ नहीं दो ही ऋतुएँ होती हैं भयंकर गर्मी और गर्मी! बाकी सब दो दो दिनों की मेहमान की तरह आती हैं... उन तितलियों की तरह... उनकी झलक पाने को ऎसे ही कुछ पल चुराने होते हैं... अकेले...
- मुखर 24/3/18

अन्तरजाल - एक चाकर

"मैडम, एक बात बताओ, ये नेट पर जो दिखाते हैं वो क्या सब सच होता है?" - बर्तन धोती रुक बाई जी ने पूछा।
मैंने खौलते पानी में अदरक डालते हुए पूछा, "क्यों? क्या देख लिया ऎसा?"
"पाँच छह बरस के बच्चे को एक माँ बुरी तरफ पीटती देखी हमने, जी दोहरा हो गया।"
वह जानती थी गई अब कम से कम दस मिनट की। 😬
" बाई जी! ये दुनिया इतनी बड़ी है कि सब जगह सब प्रकार की चीजें होती रहती हैं। पहले गाँव में भी हम औरतें कहाँ सबको जानतीं थीं। चारदीवारी, पड़ोसी, पनघट, जंगल पानी की चार सहेलियाँ, बस।" मैंने चाय छान कर एक कप उसे पकड़ा दिया।
"गाँव में प्रसव से एक मौत की ख़बर आती है तो कितना बुरा लगता है!
राजस्थान में 45000 गाँव हैं। रोजाना की दो चार मौत की ख़बर मिले तो या तो दहशत बैठ जाए या संवेदनहीन हो जाएं!
कोई माँ अपने बच्चे को यूँ ही तो नहीं मारेगी ना... कितना frustration होगा,आख़िर किसपे ज़ोर चले उसका?
हो सकता है सच ही हो! और राजनीति से संबंधित, जात पांत से संबंधित बातें लगभग झूठी खबरें ही होती हैं।" मेरे हाथ से खाली कप ले वह फ़िर बर्तन धोने लगी।
" नेट पर... इस दुनिया में इतना रोना धोना/ ग़लत बातें हैं कि जन्मों देखते रहो, रोते रहो।
आप तो नेट पर अच्छी अच्छी बातें ही ढूंढा देखा करो।"
ये नेट काँच का वो तिलिस्मी पात्र है कि जैसा मन में भाव हो वैसी ही चीज/बात हाथ लगेगी !
- मुखर
नोट - राजस्थान में 44794 (2011) गाँव हैं यह बात भी गूगल ही ने बताया!