" बारात जिंदगी की "
मैं मुस्कुराती हूँ-
कि मेरे आंगन से
गुजरती है बारात जिंदगी की !
मैं मौन हूँ -
कि उसी जिंदगी के
तहखाने के रौशनदान से
देखती हूँ मैं -
खुशियों को घूमर डालते !
आनन्द को झूमते !
कहकहों को झिलमिलाते !
सुनती हूँ सपनों कि शहनाईयां !
नहीं जानती कि -
ये बारात क्यों है !
जानती नहीं-
जिंदगी क्या है !
और ये भी नहीं,
ये तहखाना कैसा !
मैं परेशान हूँ कि -
कोई तो दरवाजा हो,
कहानी की शुरुआत तो हो !
देखना है मुझे -
किस तोरण पर
जाती है जिंदगी के बारात !!
मुखर .
1 comment:
कौन जान पाया है इसे - शुभकामनाएं
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