Tuesday, December 17, 2013

 " नेचुरली !! "
अभी कोई पिछले महीने ही की बात है. हमने 'इनको' बताया की फेसबुक पर हमारी एक पुरानी  सहपाठिन ने बड़ा धमाल मचा रखा है, बड़ा फक्र है उस पर हमे. गर्व इस बात का भी है की हमारा उसका फर्स्ट नेम भी सेम है. मेरे चेहरे की लाली देख कर उन्होंने हमे घूरा. एक पल को तो हम घबरा गए, फिर क्लियर किया की वो सहपाठिन थी न की सहपाठी ! 
ये LGBT टर्म हमने जब पहली बार पढ़ा, जाना तो हम बड़े पशोपस में फंस गए. हमारा एक-आध अफेयर्स (इस 'आध ' के विषय में कोई टिपण्णी बर्दास्त नहीं की जाएगी ) के अलावा जितने भी लोग हमारे दिल के बेहद करीब आये वे सारे के सारे मेरे अपने जेंडर वाले निकले. इसीलिए हमने कभी 'ध्यान' ही नहीं दिया अपने किसी ऐसे वैसे 'रूझान' की तरफ ! वैसे भी हमारे संस्कारों ने किसी भी तरह के रुझान को दमित ही किया था. यहाँ तक की सांस भी कितनी कब लेनी है अबोले नियमों की तहत निर्धारित थे. अब इस उम्र में ये 'ओरिएंटेशन ' शब्द ने हमारे दिमाग का दही किये हुए है.
अब हमे अपने आप पर थोडा डाउट होता है. थोडा अफ़सोस भी. पूछ लो हमारे सभी स्कूल मेट्स से हम कितने सीधे- साधे कहलाते थे. अगर हम इतने ही 'स्ट्रेट' थे/हैं तो यह हमारी खुद ही चॉइस होनी चाहिए थी...ये क्या की बचपन से ही परियों की कहानियों, फ़िल्मी गीतों और समाज-परिवार की रीतियों से दिमाग में एक ही तस्वीर उकेरी - Mr. राईट ! थैंक गॉड , इन रीतियों, गीतों व कहांनियों ने कम से कम एक रुझान तो हमारी किस्मत में लिखा ! अब ये मिस्टर कितने राईट हैं कितने रोंग यह भी, हमारे संस्कारों के अनुसार, सोचना वर्जित है.
anyways !
किसी समय दास -प्रथा बाइबल के हिसाब से सही मानी जाती थी. क्यूंकि अश्वेत लोग प्राकृतिक रूप से ही बुध्हिहीन और शारीरिक रूप से बलवान माने गए थे जिन्हें नियंत्रण में रखने और आदेश देने के लिए 'प्राकृतिक' रूप से ज्यादा बुध्हिमान सफ़ेद चमड़ी वालों का उन पर राज करना नयोचित था. एक वक़्त ऐसा भी था जब औरतों का प्रसव पीड़ा सहना जरूरी था और उनकी मदद करने वाली दाईयों को मौत तक की सजा मिलने का प्रावधान था क्योंकि ऐसी मदद 'अप्राकृतिक' और भगवान् की मर्जी के खिलाफ थी. हिटलर ने यहूदियों के दमन को 'प्राकृतिक' ठहराने के लिए डार्विन के सिधान्तों के बेतुके मतलब निकल दिखाए थे. उसने दो नस्लों के मिलन को घातक बताया था. हमारे देश में ऐसे तर्क जातियों के संधर्भ में दिए जाते हैं. 'शुद्ध-अशुद्ध के ताम -झाम ने तमाम जातियों का मंदिर में प्रवेश वर्जित कर रखा था.  ( यह पैराग्राफ शेवेता रानी खत्री जी के ब्लॉग से लिया गया है )
अब सोचने वाली बात ये है की हमारा रुझान माने कि ''ओरिएंटेशन ' प्राकृतिक है, या संस्कार जनित है, या थोपे हुए संस्कारों के स्वाभाविक विरोध (जिसके लिए हम खासे बदनाम हैं) की वजह से है या फिर यह कानून का डंडा धारा 377 ? हैं ?
नेचुरली बहुत कन्फ्यूजन है भई ! ओह्ह ! कहीं ये कन्फ्यूजन भी अन-नेचुरल माने कि अप्राकृतिक तो नहीं !! हाय हमारा धर्म ! हाय हमारे कानून !!

-----------------------------------------मुखर 

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