Friday, December 6, 2013

 " सर जी, एक आईडिया ! "

बड़े बड़े धुरंदरों, तीरंदाजों, ' ऑनेराब्लों ' को अर्श से फर्श होते देख सुन रहें हैं हम आजकल.
और कारण ? कारण तो भैया ज्यादा कुछ खास नहीं है. विभिन्न बहसों में इस कारण का नाम दिया जा रहा है ' क्षणिक आवेग ' माने कि ' हीट ऑफ़ द मोमेन्ट ' !
लो जी ! मिल गया गिरे हुओ को सहारा, तिनके का ही सही ! कम से कम खड़े तो हो गए ! थोडा सहानुभूति सा फील होता है जी, बस !
पर सांची कहें हमने तो बड़ा थ्यावस है मन में. पूछो हो काहे का थ्यावस ? अरे भई ये जो बिमारी है न , ' क्षणिक आवेग ' वाली ? हाँ वही 'हीट' वाली ...वो बिमारी नर-जात को ही होत है. नहीं तो हम कहते हैं ये जो सो कॉल्ड सिविलाईजेशन थोडा बहुत चलता फिरता दीखे है न , हो गया था इसका भी बंटाधार !
अब ये जो बात है कि हमारे को ये लिंगभेद माने की जेंडर डिस्क्रिमीनेशन का जो कीड़ा बार बार क्यों काटता है तो हमको इसका राज भी पता चल गया. बताएँगे...बतायेंगे...थोडा तसल्ली तो रखिये !
तो सोचना तो पड़ेगा इस जानवर-पने से ऊपर उठने का कोनो उपाय ! आखिर कब तलक नर-जात सहानुभूति पर जिन्दा रहेगी ? हैं ना सर जी ?
हाँ तो सर जी, हम सोचे सोचे और बहुते सोचे . परन्तु जब कोई उपाय नहीं सूझा तो लगे कारणों को ढूँढने ! कि आखिर नर-नारी के रहन - सहन ही में कोई अंतर है जो इतना बड़ा खाई बना जाता है !
और तभी हमारा मन चिहुंका - उरेका उरेका !! (अब हमसे ये मत पूछिए कि ये उरेका का यूरेका है का )
हाँ तो, हमको पता है कि कुछ सर जी हम पर हंसेंगे. मगर हमको ये भी पता है कि मन ही मन कहेंगे - बात में थोडा सा ही सही, दम तो है !
यही तो !!
और सर जी हमारा उपाय बिंदु है - १) नर-जात का पायल-चूड़ी कम्पलसरी कर देओ ! कहीं भी चोरी छिपे नहीं आ जा सकेगा फेर !
सबका कान खड़ा हो जायेगा - छनन छम ! जरा भी हिला-डूला की छनन छम ! मन का सारा कलेश वहीँ दम तोड़ देगा ! हिम्मत ही नहीं होगा कुछ गलत तो क्या सही भी सोचने का ! वो राजस्थानी गीत सुने हैं न -
"ओ म्हारी रुनक झुनक पायल बाजे सा,
कीकर आऊँ सा ! "
अपना पिय को भी मिलने नहीं जा सकती !!
२ ) दूसरा बिंदु है टेस्टोस्टेरोन  ! ये जो हारमों का डिफरेन्स है न, इसको कण्ट्रोल करने का इक्को एक तरीका युगों से अजमाया हुआ है - प्रेशर पॉइंट ! हाँ ! पांव में बिछिया और नाक में नथ ! ई दोनों पहनने से बहुते ही फायदा होत है. एइसा हम नहीं कह रहे. आजकल पढ़ी-लिखी बहुओं और दूसरी औरतों को समझाया जाता है ! क्या फायदा होता है ये किसी को पता नहीं, परन्तु फायदा होता जरूर है !
हम फिर से सोचे. बहुत बहुते सोचे. और एक बार फिर से हमको समझ में आ ही गया, फायदा ! ये प्रेशर पॉइंट हो न हो इसी ' हीट ' को कण्ट्रोल करते होंगे ! क्यों है न ?
अब हमरा आईडिया को कानूनी पायजामा पहनाने में टेम लग सकता है. परन्तु हमको लगता है सर जी समाज जो ठान ले फिर तो कोई कानून क्या उखाड़ लेगा !
हाँ, हो सकता है एक-दो पीढ़ी लगे नर- जात की सोच और हरमोन संतुलन में आने में ! परन्तु आईडिया तो झक्कास है न सर जी !
हाँ तो, हमारा जो राज है - जेंडर डिसक्रीमीनेशन वाला कीड़ा द्वारा का बार बार काटने वाला - तो यही है वो राज कि हम ना तो बिछिया पहनते हैं और ना ही नथ . तभी तो इतना 'अ- सामाजिक ' माने क्रांतिकारी विचार हमारा दिमाग में उठता रहता है. परन्तु का करें, हमारा सारा हीट सिस्टम के खिलाफ/ सुधारने सोचने में लग जाता है ना !!

                                                             - मुखर ! 

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