Friday, October 7, 2016

*कल रात की तौबा... *

चित्र में ये शामिल हो सकता है: आकाश, बाहर और प्रकृति
"अरे! आपने फिर पॉलीथिन में डाल दी सब्जियां? मैं लाई तो हूँ थैला! सरकार ने बैन लगा दिया फिर भी? "
"पॉलीथिन पर ना। मगर पॉलीथिन बनाने वाली कम्पनी पर थोड़े ना!"
एमरजेंसी में कालोनी के बाहर मेन रोड़ के नुक्कड़ पर इस सब्जी की थड़ी पर आ जाती हूँ। मीठी तकरार के बाद अपना थैला उठा चल दी। अभी मुड़ी ही थी कि आसमान के उस राही पर नज़र जा पड़ी। कि झट से चेहरा उतर गया। बहुत गुस्सा आया अपने आप पर। मम्मी कितना कहती थी नजर नीची रखा कर। आसमान पर देखेगी तो ठोकर ही लगेगी। मगर ऐसी ठोकर! यह तो नहीं सोचा था मैंने! मैं तेज तेज चलने लगी।....
....
पता है चौदहवीं का चांद इतना खूबसूरत क्यों लगता है?चलो मैं ही बता देता हूँ। क्योंकि उसकी गर्दन भी बिल्कुल तुम्हारी जैसे हल्की-सी झुकी होती है।
और हवाओं में मंदिर की घंटियाँ बजने लगी। उसका खिलखिलाने...
चाँद की गर्दन कहां होती है? हाहाहा...
...
किन सोचों में गुम रहते हो 🎶 किसी की मोबाइल पर रिंग टोन बज उठी थी। मेरे कदम और तेज़ होना चाहते थे। इस पाँच मिनट का रास्ता क्या युगों लेगा खत्म होने के लिए?...
...
पता है?
क्या?
ये चाँद है ना?
हाँ देख रहा हूँ!
ओहो! वहाँ ऊपर!
अच्छा वो?
पता है वो इतना खूबसूरत क्यों लगता है?
हम्म्?
कोई सूरज है। जिसकी रौशनी इसको चमक देती है!
हम्मम...
...
स्टूपिड! तुम कोई अमिताभ नहीं हो जो इस कदर अपनी तन्हाइयों से बात करती रहती हो!
मैं? मैं कहां? यह तो तन्हाइयां ही हैं जो कभी चुप नहीं बैठती।
बस बस! जब देखो लड़ती रहती हो मुझसे। मुझसे ही? अपने आप से ही?
मैं तो खुशी-खुशी जा रही ... ये चाँद जब भी दिखता है ना! मेरी मुझसे ही लड़ाई करा देता है! कसम है मुझे जो मैंने अब कभी देखा इस चाँद को । अरे! इत्ती जोर से? ये तन्हाई भी ना! जब देखो बस मुझपे ही हँसती है! बंद भी कर दाँत निकालना! लो जी, तय हुआ सफर, आ गया घर...
हाय मुखर! इतनी रात को सब्जी?
हाँ, कल सुबह कोई.....
अच्छा सुन, परसों नया चाँद है। अपन...
मेरा मन पड़ोसन की बात अनसुना कर चुका था। इस चाँद को नहीं देखने की कसम खाई थी ना। अब तो नया चाँद...
अब? अब कौन हँसा? ओह्ह, यह तो पड़ोसन है...
- मुखर! 16-9-16

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