Monday, August 10, 2015

-*- होर्न प्लीज ( ह को प पढ़ा जाये ) -*-


जिस जोरदार तरीके से सरकार द्वारा बैन किये गए 857 साइट्स का विरोध किया गया हम समझ गए आज की पीढ़ी तकनीक की पुरोधा ही नहीं बल्कि पुरातन संस्कृति की सच्ची सरमायदार भी है।  हॉर्न को हॉर्न मानने से इंकार करते हुए वात्स्यायन, कामसूत्र, खजुराओ व  कोणार्क इत्यादि के इतने सटीक उदाहरणों को उद्धरित किया कि बस्स्स्स ! हम तो निहाल ही हो गए।  तब से न जाने क्यों अपने आपको लानत मलानत भेज रहे हैं कि हमारे ज्ञान चक्षु तो अभी तलाक मूंदे ही हुए हैं ? हैं !!
ऐसा हमेशा से नहीं था।  हमारी भी एक उम्र आई थी जब ये नीली नीली दुनिया हजारों रंगो से नहाई थी। हमारे ' ये' तो आज भी देखते हैं , मगर हमारा वो काल ५-७ वर्षों में निपट गया जब हम भी सारे खिड़की दरवाज़े बंद करके उस पर परदे भी लगा कर एक आध फिल्में खींसे निपोरते , खीखीखी करते, स्क्रीन की तरफ नहीं देख रहे हैं का नाटक करते अपने आनदुत्सव के अनुभव में इज़ाफ़े कर रहे थे।  इन अनुभवों से एक बात तो तय हुई कि हार्ड कोर अपने बूते की नहीं थी। धीरे धीरे पता लगा कि हमे देखने से ज्यादा पढ़ने में मन लगता है।  बस फिर क्या था, लगा दी इनकी ड्यूटी , कुछ 'अच्छी वाली ' मैगज़ीन लाकर दो ना। 
वो दिन जाने कब हवा हुए।  ख़ैर। … अपन आज की बात करते हैं। आज हमें लत लगी है हर बात के कारणों व् नतीज़ों को तलाशने की।  

H orn (promotes)--> Prostitution Industry --> Girls forced in Prostitution --> Child Trafficking

ये सूत्र मैंने फेसबुक से कॉपी की।  बात में कुछ तो दम है। आइये देखते हैं :-
अगर हमने इन साइट्स को बैन करने  ख़िलाफ़ हैं तो यह भी स्वीकारना होगा कि  फिल्मों को प्रोडूस करने में कितना पैसा, लोग , वक़्त और टर्न ओवर है की इसे इंडस्ट्री ही कहा जाता है।  इंडस्ट्री होने के नाते -
१. हॉर्न इंडस्ट्री लिंगभेदी ( जेंडर biased ) है। फ़िल्म के कलाकारों को स्क्रीन टाइम के अनुसार न तो पे किया जाता है और न ही 'शोहरत ' में भागीदारी में न्याय।   ( जिनसे मैंने पुछा वे नाम में सनी लीओन का नाम तो बता पाये मगर पुरुष वर्ग में नाम ध्यान नहीं।  ज्यादा जोर देने पर  'सनी लियॉन का हसबैंड' .
२. समाज को हॉर्न देखने से तो गुरेज़ नहीं है मगर ऐसी फिल्मों में काम 'आती ' / काम में धकेल दी गयी लड़कियों को बदनाम/ गंदी भी कहेंगे।  जिसका नतीजा ? किडनेपिंग/ ब्लेकमेलिंग ( याद आया दिल्ली के एक नामी स्कूल का MMS आप सबको ?)
३. जो लड़कियां जाने कितनी मजबूरियों में इस व्यवसाय में कदम रखती भी हैं तो समाज की जाने किन घिनौने व्यवस्था के अंतर्गत हर एक 'गर्ल ' को एक दलाल ही बाज़ार मुहैया कराता है।  अर्थात वो दलाल बिना हींग फिटकरी लगाये खाता है ! लड़की का शरीर, उसी की मेहनत, उसी की बदनामी तो काम से काम पूरा पैसा तो मिले उसे !!
४. गर ये साइट्स इतने ही जरूरी हैं तो क्यों न प्रोस्टीटूशन को लीगल कर दिया जाये ? कम से कम आये दिन इन्हें क़ानून के रखवाले हड़काएगे तो नहीं , ब्लैकमेल तो नहीं करेंगे !
सिर्फ हॉर्न देने से क्या मतलब , रास्ता भी तो दीजिये।
                                                                 --------------------- मुखर



http://www.covenanteyes.com/2011/09/07/the-connections-between-pornography-and-sex-trafficking/

http://www.covenanteyes.com/2011/09/07/the-connections-between-pornography-and-sex-trafficking/

http://medicalkidnap.com/2015/01/29/15000-cases-of-arizona-child-porn-most-uninvestigated/


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