Tuesday, October 9, 2012

- क्या तुम जिन्दा हो -
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मैं कुछ सोचती नहीं
बोलती तो बिलकुल भी नहीं

जो वैज्ञानिक प्रयोगशाला में न कर सके,
आदमी घर बैठे कर गया
रोबोट से बेहतर मशीन
मुझे ठोक ठोक कर बना दिया.
टी वी, नेट, पेपर पढ़ते पढ़ते
बस जबान हिलाइए
और आपका नाश्ता टेबल पर
आपका बिजनेस सूट प्रेस
जूता पालिस
लेपटोप, डायरी,पेन, टाई
कर की चाबी समेत सब रेडी .
और तो और - आप अपनी
खीज भी निकाल सकते हैं ,
मुझे डांट मार भी सकते हैं !
मैं कुछ सोचती नहीं न,
बोलती तो बिलकुल भी नहीं !

आप कमा नहीं सकते तो क्या
दहेज़ के नाम पर
मेरे बाप से मांग सकते हैं !
बाप गर न नुकुर करे
आप मुझे घर से निकाल सकते हैं !
वैसे भी साल में पांच त्यौहार
इसीलिए तो आते हैं,
जब लड़की के घर वाले
आपके घर 'माल' पहुंचाते हैं !!

मुझे याद आया सदियों से
मुझे कही जाने वाली बात
दिमाग इस्तेमाल करना बंद करो !
बहुत चलती है तुम्हारी जुबान!
जाओ अंदर! बच्चे संभालो, रोटी सको !
लुहार सी सौ सौ चोटों ने
हजारों वर्षों में -जड़ दिया ताला !
और मैं मर गयी !
वैसे बिलकुल मर भी नहीं गयी-
बस बोलती व् सोचती नहीं !

और जब मैं बोलती भी हूँ,
थोडा सोचती भी हूँ,
तो क्या वाकई 'मैं' ही बोलती हूँ ?
या मेरे अंदर भरी हुई
'हमारी ' ही परम्पराएँ
'हमारी ' ही जरूरतें
'हमारी ' ही भाषाएँ -
शब्द रूप लेती हैं ?

कल पढ़ा था मैंने
मरने के बाद
आदमी बोलता नहीं.
मरने के बाद-
आदमी सोचता नहीं.
यकायक नजर आने लगी
मुझे चलती फिरती लाशें !
कहो दोस्त - क्या तुम जिन्दा हो ?

2.
हे - हेलो - हाँ तुम
तुम भी बहन - बेटी के घर
तीज त्यौहार नजराना पहुंचाते हो न ?
बहु, बीवी के घर से आया माल
परंपरा के नाम पर उड़ाते हो न ?
भावी घर वाले आगे पढाये,
पढना, नौकरी कराएँ तो करना
ऐसा कह कर अपनी बेटी को बहलाते हो न ?
( उस throughout goldmedalist ने RAS परीक्षाएं सिर्फ इसलिए
नहीं दी कि शादी तो राजस्थान से बहार ही होगी न ? फिर क्या करुँगी ?)
नौकरी करती हो तो
अपनी ख़ुशी के लिए
तुम्हारे पैसे से घर नहीं चलता
यह अहसास जताते हो न ?
वो तुम्हारे उम्र के लिए रखे उपवास
तुम गुटखे, मय या धुएं में
खुद का भी - उसका भी -
दिल - दिमाग - शरीर गलाते हो न ?

तुम कब सोचोगे ?
तुम कब बोलोगे?
सड़ी गली परम्पराएं
तुम कब तोड़ोगे?
कहो दोस्त - क्या तुम जिन्दा हो ?
उस दिन पढ़ा था न मैंने भी तुमने भी -
मरने के बाद...

                   मुखर .


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