Monday, August 20, 2012

'साजिश '
इश्क में  हम  चुप ही रहे,
अक्ल से था काम लिया,
नाम तेरा लिख कर रेत पर
लहरों के था नाम किया!

हम चुप थे हाय मगर 
लहरों ही ने घात किया ,
समंदर से कहती थी लहर
सूरज ने जिस पर कान धरा
करता रहा वह मेघों को खबर !
गिरी जो दो बूंद -
इश्क की सौंधी खुशबू से
महक उठ्ठी फिर मिटटी !

मन की मुठ्ठी में जो
रखा अब तक कैद था
वो मुस्क आज चहुँओर था !
मेघ घनघोर घुमड़ घुमड़
समंदरी  साजिश का शोर था
बूंद बूंद फिर धरती के कानो
नाम तेरा रिसता रहा.
बिखेर  रहा  था अम्बर प्रेम मोती
मन मेरा क्यों मयूर था ?

इश्क में हम तो चुप ही थे
अक्ल से था काम लिया ,
रेत पर छुपा कर जो लिखा था
लहरों ने वो चर्चा यों आम किया...
                                       - मुखर.

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