'अबकी सावन '
न मेघ, न मल्हार,
न फुहारों की ताल,
अबकी सावन
खाली हाथ आया !
क्यों नहीं गौरैया
मिटटी में नहाती है ?
कौन सा टोटका करूँ,
जिससे बारिश आती है !
वह जाते जाते
ड्योढ़ी पर ठिठक गया
और मेघों का काफिला
क्षितिज पर अटक गया.
मूंह पर छींटे मार
मुझे चिढाया , सताया !
निर्दयी वहीँ खड़ा खड़ा
मुझ पर हंस रहा !
मैं धरती की संतान,
मन में आस का गुबार,
और आँखों में पानी लिए,
उसका हाथ थाम लेती हूँ !
मेरे पहुना,
मेरे मन भवन
मेरे सावन
न जाओ
दिखाने के लिए ही
अगर जाना है, तो जाओ
मगर कसम है तुम्हे
नाम बदल कर ही
भादो बन कर ही
वापस आ जाओ !
मैं उसे मना रही हूँ
भादो बन कर आना !
देखो , खाली हाथ न आना
खूब खूब अमृत लाना
रिमझिम प्यार बरसना !
सुनो - धरती दरक रही,
फसल सूख रही,
दिलों से उमीदों की
सांस उखड रही,
क्योंकि अबकी सावन
खाली हाथ आया.
- मुखर
न मेघ, न मल्हार,
न फुहारों की ताल,
अबकी सावन
खाली हाथ आया !
क्यों नहीं गौरैया
मिटटी में नहाती है ?
कौन सा टोटका करूँ,
जिससे बारिश आती है !
वह जाते जाते
ड्योढ़ी पर ठिठक गया
और मेघों का काफिला
क्षितिज पर अटक गया.
मूंह पर छींटे मार
मुझे चिढाया , सताया !
निर्दयी वहीँ खड़ा खड़ा
मुझ पर हंस रहा !
मैं धरती की संतान,
मन में आस का गुबार,
और आँखों में पानी लिए,
उसका हाथ थाम लेती हूँ !
मेरे पहुना,
मेरे मन भवन
मेरे सावन
न जाओ
दिखाने के लिए ही
अगर जाना है, तो जाओ
मगर कसम है तुम्हे
नाम बदल कर ही
भादो बन कर ही
वापस आ जाओ !
मैं उसे मना रही हूँ
भादो बन कर आना !
देखो , खाली हाथ न आना
खूब खूब अमृत लाना
रिमझिम प्यार बरसना !
सुनो - धरती दरक रही,
फसल सूख रही,
दिलों से उमीदों की
सांस उखड रही,
क्योंकि अबकी सावन
खाली हाथ आया.
- मुखर
No comments:
Post a Comment