Tuesday, July 31, 2012

'अबकी  सावन '
न  मेघ, न मल्हार,
न फुहारों की ताल,
अबकी  सावन
खाली हाथ आया !
क्यों नहीं गौरैया
मिटटी में नहाती है ?
कौन सा टोटका करूँ,
जिससे बारिश आती है !
वह जाते जाते
ड्योढ़ी पर ठिठक गया
और मेघों का काफिला
क्षितिज  पर अटक गया.
मूंह  पर छींटे  मार
मुझे  चिढाया , सताया !
निर्दयी वहीँ  खड़ा खड़ा
मुझ पर हंस रहा !
मैं धरती की संतान,
मन में आस का गुबार,
और आँखों में पानी लिए,
उसका हाथ थाम लेती हूँ !
मेरे पहुना,
मेरे मन भवन
मेरे सावन
न जाओ
दिखाने के लिए ही
अगर जाना है, तो जाओ
मगर कसम  है  तुम्हे
नाम  बदल  कर ही
भादो  बन कर ही
वापस आ  जाओ !
मैं उसे मना  रही हूँ
भादो बन कर आना  !
देखो , खाली हाथ न आना
खूब खूब अमृत लाना
रिमझिम  प्यार  बरसना !
सुनो - धरती दरक  रही,
फसल  सूख  रही,
दिलों  से  उमीदों की
सांस  उखड  रही,
क्योंकि  अबकी   सावन
खाली हाथ आया.
                    - मुखर

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