एक अप्रैल को सियालदाह पकड़ी थी तो चार की रात मरूधर से वापस पहुँच गई अपने शहर, मग़र इन साढ़े तीन दिनों में जो यात्रा अनुभव हुए वो अपने आप में अनूठा है। भारत बंद की वजह से यह अनुभव कई गुना eventful हो गया।
एशिया का सबसे बड़ा गाँव, एशिया का सबसे बड़ा, 9किमी, रेलवे यार्ड, एशिया का सबसे बड़ा रिहायशी विश्वविद्यालय, एशिया का सबसे बड़ा विश्विद्यालयी संग्रहालय... सब घूमी!
गंगा स्नान, अस्सी के घाट की महा आरती देखना, फौजियों के गाँव के कामख्या मंदिर में देवी को चढ़े नवरात्रि की चुन्नी का मुझे ओढाया जाना... अलौकिक अनुभव!
मग़र आज जो मैं ख़ुशी आपसे बाँटने जा रही हूँ वह मेरे लिए इन सबसे बढ़ कर है!
काशी में उतर कर अस्सी के घाट पहुँचने तक मुझे "काशी का अस्सी" के लेखक जो याद आए तो उनसे मिलने की उत्कंठा लिए पहुँच गई बी एच यू के मुख्य दरवाजे पर (शायद सिंह द्वार)!
चौकी के पुलिस ने कहा गार्ड से पूछो... गेट के पुलिस ने कहा वो नहीं गार्ड अंदर है... गार्ड ने कंट्रोल रूम के नंबर दिए... कंट्रोल रूम ने पी. आर. ओ. के, पी आर ओ ने हिंदी डिपार्टमेंट के... फ़िर फ़िर से सारे कॉल... आख़िरकार माननीय लेखक के फोन नंबर तथा पता मिल ही गया !
उन्हें फोन किया तो उन्हें मेरे द्वारा पूछताछ की ख़बर लग गई थी, दे दिया समय तीन बजे आने का! 😀
हाँ, मैं "उपसंहार" और "काशी का अस्सी" पढ़ी हूँ! उन अंतराष्ट्रीय ख्यातनाम लेखक सपत्नी के चरण रज ले पाना मेरा सौभाग्य है।
मैं तो क्या बोलती, उन्होंने ही बहुत कुछ पूछा, बताया, समझाया और मरगदर्शन किया।
"कहानी कथाओं में मुझे बेहद रुचि है, मैं तुम्हारी किताब पढूंगा!" कह कर उन्होंने मेरी पुस्तक "तिनके उम्मीदों के" को उलट पुलट कर पूरा देखा और मुझे उसमें कुछ लिखने को dictate किया.
"फोन नंबर जरा बड़े बड़े लिखना!"
उन्होंने "रेहन पर रघ्घू" भी पढ़ने को कहा।
"क्या क्या देखा बनारस में? बी एच यू नहीं घूमी? यहाँ से सीधे वहीं जाना... एक ऑटो करो और पूरे परिसर में चक्कर लगाना। भीतर ही विश्वनाथ मन्दिर भी देखना... और भारत कला भवन भी।"
आधे घंटे की वह मुलाकात तथा प्रेमपगी आवभगत अविस्मरणीय है!
" हे विश्वनाथ ! मुझे फ़िर बुलाना काशी!"
- मुखर
एशिया का सबसे बड़ा गाँव, एशिया का सबसे बड़ा, 9किमी, रेलवे यार्ड, एशिया का सबसे बड़ा रिहायशी विश्वविद्यालय, एशिया का सबसे बड़ा विश्विद्यालयी संग्रहालय... सब घूमी!
गंगा स्नान, अस्सी के घाट की महा आरती देखना, फौजियों के गाँव के कामख्या मंदिर में देवी को चढ़े नवरात्रि की चुन्नी का मुझे ओढाया जाना... अलौकिक अनुभव!
मग़र आज जो मैं ख़ुशी आपसे बाँटने जा रही हूँ वह मेरे लिए इन सबसे बढ़ कर है!
काशी में उतर कर अस्सी के घाट पहुँचने तक मुझे "काशी का अस्सी" के लेखक जो याद आए तो उनसे मिलने की उत्कंठा लिए पहुँच गई बी एच यू के मुख्य दरवाजे पर (शायद सिंह द्वार)!
चौकी के पुलिस ने कहा गार्ड से पूछो... गेट के पुलिस ने कहा वो नहीं गार्ड अंदर है... गार्ड ने कंट्रोल रूम के नंबर दिए... कंट्रोल रूम ने पी. आर. ओ. के, पी आर ओ ने हिंदी डिपार्टमेंट के... फ़िर फ़िर से सारे कॉल... आख़िरकार माननीय लेखक के फोन नंबर तथा पता मिल ही गया !
उन्हें फोन किया तो उन्हें मेरे द्वारा पूछताछ की ख़बर लग गई थी, दे दिया समय तीन बजे आने का! 😀
हाँ, मैं "उपसंहार" और "काशी का अस्सी" पढ़ी हूँ! उन अंतराष्ट्रीय ख्यातनाम लेखक सपत्नी के चरण रज ले पाना मेरा सौभाग्य है।
मैं तो क्या बोलती, उन्होंने ही बहुत कुछ पूछा, बताया, समझाया और मरगदर्शन किया।
"कहानी कथाओं में मुझे बेहद रुचि है, मैं तुम्हारी किताब पढूंगा!" कह कर उन्होंने मेरी पुस्तक "तिनके उम्मीदों के" को उलट पुलट कर पूरा देखा और मुझे उसमें कुछ लिखने को dictate किया.
"फोन नंबर जरा बड़े बड़े लिखना!"
उन्होंने "रेहन पर रघ्घू" भी पढ़ने को कहा।
"क्या क्या देखा बनारस में? बी एच यू नहीं घूमी? यहाँ से सीधे वहीं जाना... एक ऑटो करो और पूरे परिसर में चक्कर लगाना। भीतर ही विश्वनाथ मन्दिर भी देखना... और भारत कला भवन भी।"
आधे घंटे की वह मुलाकात तथा प्रेमपगी आवभगत अविस्मरणीय है!
" हे विश्वनाथ ! मुझे फ़िर बुलाना काशी!"
- मुखर
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