आज जी भर क्यूँ न इस तौर से रोया जाए,
अपना दामन खून-ए-कातिल से भिगोया जाए।
.
शहर के सूखते दरिया नज़रअंदाज़ कीजे, ...
आग जब तक न लगे, चैन से सोया जाए।
.
अपने हाथों में जो है वक़्त का एक बीज उसे,
कौन काटेगा फ़सल भूल कर बोया जाए।
.
ये तो मुमकिन ही नहीं आप मसीहा हो मग़र,
मेरे काँधे पे सलीब आपका ढोया जाए।
.
क्या हुआ जो हकीकत में है तामील कठिन,
कम से कम ख्वाब तो आँखो में संजोया जाए ।
No comments:
Post a Comment