Tuesday, March 21, 2017

" छलक छलक जाए..."




जब भी मन खाली खाली होता है या भारी भारी , मैं किट्टू के कमरे की इस कुर्सी मेज़ पर आ बैठती हूँ   जैसे कोई किताब कोई डायरी कहेगी कि आ तेरा मन बहला दूँ   जैसे कोई कलम कहेगी कि दर्द देता है जो, तुझे आ वो फ़ांस निकाल दूँ। धत्त ! इत्ता भी कोई मूड ख़राब थोड़े ना है ! मग़र .....बस खाली खाली ... परसों रात माइग्रेन अटैक के चलते कल की 'विमन कार रैली' में नहीं जा सकी।  मन बुझा बुझा सा रहा कल दिन भर । आज शीतला- अष्टमी है   मम्मी का फ़ोन भी आया था कल ।  पर घर में बच्चे न हों तो क्या बनाने का जी करे ! फिर भी कल रांदा पुआ करा। हम दो को आखिर चाहिए भी कितना अब इस उम्र में ...
"चींSS चिंSS "
पीछे मुड़ कर देखा एक चिड़िया खुली खिड़की के पल्ले पर बैठी कमरे में झांक रही है...
मुझे सुबह की घटना याद आ गई
"मैं ये रोज रोज चुग्गा डालती हूं , पानी रखती हूँ , फिर चिड़िया आती क्यों नहीं ? सारे के सारे बस कबूतर ही ..."
"है तो सही इत्ती सारी चिड़ियाँ " बाहर आते हुए इन्होंने कहा।
"अरे भई कबूतरों के साइज के हिसाब से नहीं तो कम से कम संख्या के हिसाब से तो हों !"
अभी मेरी तल्खी कम न हुई थी कि कूंडी के पानी में नहाता कबूतर सारा पानी इधर उधर उँड़ेल दिया। अन्य कबूतरों के उड़ान में ताली के स्वर के साथ हम दोनों की हँसी भी शामिल हो गई।
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"कितनी सड़ी  चाय बनाई है तुमने !" अख़बार से सर उठा मुँह बिगाड़ते हुए मैंने कहा।
"अरे भई गर्मियां आ गई हैं   अब अदरक नहीं डालूंगा। थोड़े दिनों में आदत हो जाएगी !"
अपना सा मुँह लेकर मैंने वापस अख़बार में आँखें गड़ा दी।  अच्छा ! तो आज 'गौरैया डे' है ! ह्म्म्म ...
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और थोड़ी देर बाद मैंने अपने आपको इस कमरे की इस कुर्सी पर पाया।
खिड़की के पल्ले पर एक और चिड़िया आ बैठी थी और कमरा "चीं चीं चूं चूं ' से गुलज़ार था।
दोनों जैसे मुझे समझा रही हों  'आज को जीओ ! ..अभी को जीओ ! ..यह सृष्टि तुम्हारे पहले भी हंसी थी और तुम्हारे बाद में भी खूबसूरत रहेगी ! सृष्टि की चिंता न करो ! ... हमारे लिए तो हर दिन हमारा है ! ... 'गौरैया डे !
मैंने मेज़ पर रोस्टेड अनाज की कटोरी देखी। ....पानी से भरा गिलास देखा। ..लैपटॉप उठा कमरे से बाहर आ गई।
 :) मज़े करो ! आज से हर दिन तुम्हारा दिन !
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शाम को -
"निकलने से पहले तुमने खिड़की भी बंद नहीं की ? देखो पूरे कमरे में तिनके ही तिनके ! चिड़िया घोंसला बना लेगी ना कमरे में !"
"नहीं बनाएगी   मैं रोज साफ़ कर दूंगी !"
"स्टुपिड ! सेफ्टी पॉइंट ऑफ़ व्यू तो. .."
"अब खिड़की से कौन आएगा ? आयरन रोडस तो हैं ही ना ! वैसे भी यह बालकॉनी साइड है ! दिन भर चलती सड़क की तरफ !"
"फिर भी ..!!"
"अरे मैंने सोचा बाहर वहां कबूतर सारे दाने  चुग जाते हैं , पानी भी नहीं रहने देते ! गौरैय्या के लिए यहाँ...
"तो क्या कबूतर नहीं आएंगे इस खुली खिड़की से ?"
"ओह्ह !!! "
डिनर हो चुका है   वे लॉबी में बैठे टी वी देख रहे हैं   और मैं फिर किट्टू के कमरे की कुर्सी पर आ बैठी हूँ !
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- मुखर

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