Friday, July 22, 2016

+ मन समरस्थल +

जीतना तो होता है उसे,
मगर लड़ना नहीं आता।, सो
उसकी उसी से जो लडाई होती है,
मुझे ही लड़नी होती है।
फिर मेरी उसकी लड़ाई भी
मैं ही लड़ती हूँ।
और मेरी खुद मुझसे लड़ाई
मैं ही तो लड़ूंगी ना।
हे कृष्ण!
ये कैसा कुरूक्षेत्र है?
कि हर और खड़ा
मेरा ही कोई अंश।
मेरा ही एक अक्श।
वो भी मैं, मेरा मैं, मैं भी मैं!
यह कैसा धर्म युद्ध!
कि हर ओर मैं ही मैं!
तीस पर राज की बात तो ये,
कि उसे खबर तक नहीं!
आखिरकार
मौसम तो बन रहे हैं
अभी मगर
शंखनाद नहीं हुआ!
- मुखर।

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