Monday, March 7, 2016

* श्रद्धा *

कम से कम त्यौहार पर तो नया कपड़ा पहन लिया कर। खुद ही को डपटती मैं नहा कर तैयार हो रही थी। पर्स उठाया ही था कि आईने में से मेरे अंदर की मुखर ने ताना कसा-
कहाँ चल दी मैडम? वही पितृसत्तात्मक गढ़ को शीश नवाने? जिसने महिलाओं की परतंत्रता के इतने नियम बनाए उसी को फूल चढ़ाने ? कन्या धन पराया धन, पुत्र से ही मोक्ष...
बस बस! वही पुराना राग!
तो तुम ही कुछ नया करो!
हुँह! आईने को मुँह चिढ़ाती मैंने पर्स उठाया और चल दी।

गोविंदम स्वीट्स से बीस समोसे लिए। राशन की दुकान से बीस बीस साबुन, छोटी छोटी शीशियां तेल की और टूथ ब्रश लिए। पास ही बंजारों की बस्ती में बच्चों को बांट दिया! उनकी खुशी और मस्तीयां ज्यादा शुकून दे गई।
कार स्टूरियो पर FM गा रहा है, छुट्टी है मौज मनाओ...
ओए! कहां छुट्टी बच्चू! चल आफिस! smile emoticon

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आप सभी आज शिव लिंग पर पुष्प दूध अर्पण करते जरा गौर से देखना, वहीँ शक्ति योनी भी विराजमान हैं!
* * * मुखर। 7/3/16

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