लहरों की तरह यादें...
जाली का दरवाजा लगा छनती
हवा और चौकोर बिछावन सी धुप में जब मटर छिलने बैठी, मेरी उंगलियों पर थोड़ी
झुर्रियां उभर आयीं. मेरे बॉब कट बाल कमर तक गुंथी हुई चोटी हो गए. और कहीं से आकर
मेरी कमर में साड़ी का पल्लू खुस गया. मैंने देखा केप्री नहीं साड़ी की चुन्नटों के
बीच दीखते मेरे पैरों में चांदी की बिछिया पाजेब थी !
" बिट्टू
sss...!"
" हाँ s s ss ! "
कितने बरसों बाद किसी ने मुझे आवाज दी थी इस नाम से...!
" मम्मा ! कितने नाम
निकालोगी मेरा ? मैं किट्टू हूँ , किट्टू ! बिट्टू मत बोला करो मुझे !"
देखा तो धुप का टुकडा कहीं
नहीं था . ...और ना ही...
फिर वो - ? मैं ?
" अच्छा ! जा, एक
गिलास पानी ला दे ! "
" अभी तो पि ..."
" हाँ, एक और ला दे
बीटा. बड़े जोरों की प्यास लगी है " अब मैं उससे क्या कहती ? कि आवाज मैंने
नहीं दी थी ? ऐसे तो कभी मेरी मम्मी मुझे
आवाज दिया करती थी !
- मुखर !
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