Friday, May 30, 2014

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWVwZsvytRm4a8O_LplXVkVQ5rmyCpD-H9HLtk-NUF3u60gUwdq3y4eW7vFTEhxbrUbaSJE-WOn_24ExlR7bVYxLLVDz1dL9rtmcja5oFRwHDhIgpuMxGbIVGYgPpTZrmLZ9qrsV1Qj77u/s1600/garden+037.jpgये उलझन !
वह उड़ तो सकता था,
वह उड़ भी तो रहा था,                                     
मगर उसकी उड़ान की जद
पंजे में बंधी एक डोर थी.
कच्चे धागों से ये नाजुक बंधन.
इस घेरे के अंदर की जमीन पर,
ये जो कुछ धब्बे से दीखते हैं...
वक़्त की गर्द से ढके छिपे ,
कुछ जख्म हैं,
पंछी के नाजुक पंजो पर भी...
जख्मी तन...छलनी मन  !
नहीं ! इसके परे देखने के लिए,
मेरे तुम्हारे पास नजर नहीं.
तुम तो बस उसकी उड़ान देखो,
क्योंकि वो उड़ तो सकता था,
वह उड़ भी तो रहा था...
कच्चे धागों के ये नाजुक बंधन !!
यदा-कदा फड़फड़ाहट सी जो
सुनाई देती हैं न !
भीतर से आती कोई आवाज है...
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiJUbxOePM1zrQKSnYsdzJru6z2lSqKgEgkI3zpecqkJnDglmgIvOwyr-v5QAiUFcmCz1WOQAdlRI-EBTVxuy13bM-sURgEbwVihBeV-H48K61X8M5jxSZqW7qgFe2rQYG_KTCJWAWgtag/s1600/il_430xn13737421.jpgजैसे पर है तो परवाज है !
वह खुला आसमान मुझे, या
मैं खुले आसमान को ताकता हूँ !
बेजुबान परिंदों की आँखों में, या
जिंदगी के गिरेबान में झांकता हूँ !
तार -तार सा कुछ...
क्या कोई ख्वाब था ?
बड़ी रंगीन सी ये उलझन !!
कच्चे धागों से ये नाजुक बंधन !
तभी तो, देखो, वह उड़ रहा है .
क्योंकि वो उड़ तो सकता है.
मगर उसकी उड़ान की जद
पंजे में बंधी डोर है !
पहचाना ?
अब तुम पूछोगे -
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgoyZ17bH5WzhND8y7-rl0PFP6E_JXrfvJ0qxboPjbOCN5sePKlqVN44Bzz5gMgK376bxoMpCD1I9PrYqx8nf5xVYjz45Gli46LIUF8Rz6nQHB622cV63A93TdfEhgstfXUKecWVEKm_ZY/s1600/threadingbirdthroughcage.JPGक्या ? उड़ान, जख्म या डोर ?
अरे बुध्धू ! वो पंछी !
हहहहाहाssssss..
---------------मुखर !!



Friday, May 16, 2014

आशंकाएं ( Preconceived Notions ) :-

Is that a good thing? or is it a terrible thing ?
Anyways ,
देश का सवाल है, ऊंगली तो उठाना पड़ेगा, नेताओं को बताना पड़ेगा, जनता को कोन्फीडेंस में लेना पड़ेगा !! तो, पेश है :-
आशंकाएं :-
अब हम अमेरिका हो जायेंगे, इंग्लैंड हो जाएँगे !
यह जानने की हसरतभर है मुखर -
क्या हम भारत- भारतीय रह पाएंगे ?
अख़बार, टी वी सब मीडिया उनके ही गुण गायेंगे,
आज तो जी भर कर बोल लेने दो हमको,
कल ये हम सबकी बोलती बंद कर जायेंगे !
( आजकल हम स्टार-प्लस पर महाभारत देख रहे हैं )
हर संकट, भीषण अत्याचार, दुःख, अपमान भी,
धर्मराज को धर्म से न डिगा पाए ,
सुबह ( शक) हमको है ऐ मुखर -
क्या हम धर्म-निरपेक्ष रह पाएंगे ?
कहीं ऐसा न हो, आम आदमी बसदौलतमंद, सत्तानासीन, कोरपोरेट के,
पांव दबायेंगे, जी हुजूरी बजायेंगे !
तसलीमा, रुश्दी, हुसैन तो नहीं 'पढ़' पाते यारों ,
डर है क्या अब हम ऍफ़ बी पर भी,
कुछ अच्छा, कुछ मन का पढ़ पाएंगे ?
                                   - मुखर !

Saturday, May 10, 2014

लहरों की तरह यादें...
जाली का दरवाजा लगा छनती हवा और चौकोर बिछावन सी धुप में जब मटर छिलने बैठी, मेरी उंगलियों पर थोड़ी झुर्रियां उभर आयीं. मेरे बॉब कट बाल कमर तक गुंथी हुई चोटी हो गए. और कहीं से आकर मेरी कमर में साड़ी का पल्लू खुस गया. मैंने देखा केप्री नहीं साड़ी की चुन्नटों के बीच दीखते मेरे पैरों में चांदी की बिछिया पाजेब थी !
" बिट्टू sss...!"
" हाँ s s ss ! " कितने बरसों बाद किसी ने मुझे आवाज दी थी इस नाम से...!
" मम्मा ! कितने नाम निकालोगी मेरा ? मैं किट्टू हूँ , किट्टू ! बिट्टू मत बोला करो मुझे !"

देखा तो धुप का टुकडा कहीं नहीं था . ...और ना ही...
फिर वो  - ? मैं ?

" अच्छा ! जा, एक गिलास पानी ला दे ! "
" अभी तो पि ..."

" हाँ, एक और ला दे बीटा. बड़े जोरों की प्यास लगी है " अब मैं उससे क्या कहती ? कि आवाज मैंने नहीं दी  थी ? ऐसे तो कभी मेरी मम्मी मुझे आवाज दिया करती थी !
                                                                          - मुखर !