Sunday, July 15, 2012

काला – सफ़ेद

काला – सफ़ेद
चले  जाओ  यहाँ  से ,
 वरना  मुंह   काला  कर देंगे !
 (TO WOMEN JOURNALISTS, AT A SEMINAR)
हमारा  काला  करोगे  तो ,
 तुम्हारा  क्या  सफ़ेद  रह  जायेगा ?

क्यों  उनका  काला  भी 
समाज  को  काला  नज़र  नहीं  आता ?
और  इनका  झक्क  सफ़ेद  भी 
दागदार  दीखता  है !
शूली  पर  चढ़ता  है ?
क्यों  रेल  इंजिन से ,
 कट  के  मरने  वाली  लड़की ,
आगे  आगे  भाग  रही  थी ,
और  पीछे  चार  लड़के ?
 (5th February ’12-jaipur)
क्या , कैसा , किसका  डर  था 
 उसके  मन  में ?
और  उनके  दिल  दरिन्दे ?
भाग  के  उसने  क्या  बचा  लिया ,
क्या  गवां   दिया ?
जिंदगी  क्यों  इतनी  बेमानी  हो  गयी ?

वो  जब  बच्ची  थी
बड़ों  ने  कहा , परायों  पास  न  जाना 
हर किसी  से  बात  नहीं  करना .
वह  परायों  से  सहमने  लगी .
वक़्त  के  साथ  प्रश्न  उठने  लगे -
किसका  फ़ोन  था ?
क्यों  आया  था ?
 वो  कौन  था ?
सही  नहीं  है  जमाना ,
और  तुम  भोली !
धीरे  धीरे 
उसका  मिश्री  सा  मीठा  मन
करेला -नीम  हो  गया !!
हर  मुश्कुराहट को  अब ,
शक्की  नज़रों  से  देखती  है .
हर  मुलाकात  को ,
साजिस  समझती  है !
सब  अनजाने  उसे ,
दरिन्दे  लगते  हैं ,
हर  आँख  में  वह ,
वहशियत  पढ़ती  है  !!

वो  भी  जब  बच्चा  था
‘तू  तो  लड़का  है ’
का  दंभ  लेता  गया .
हर  घटना , कहानी , किस्सा 
‘तेरा  कुछ  नहीं  बिगड़ता ’
उसको  कहता  गया !
ले  जिंदगी  के  'मजे' .
तेरे  लिए  ‘सब ’ जायज  है !
धुआं , दारू  और  'दिल'  का ,
जो  ‘कारनामे ’ करते  हैं ,
वही  ‘मर्द ’ कहाते  हैं .
बाज़ार  में  बिकता  हुस्न ,
अब  बाएं  हाथ  का  खेल ,
 चाहे  देख  लो टीवी ,
ढूँढो   नेट  पे ,
या  टटोलो  अपने  सेल !

नतीजा  क्या  हुआ ?
सुनसान  राहों में ...
रात  के  अँधेरे  में ...
या  फिर  अकेले  में. ..
वो  भेड़िया  बन  जाता  है !
वो  बकरी  सी  मिमियाती  है  !
क्यों ? आखिर  क्यों ?
जुर्म  वो  करता  है ,
सजा  वो  पाती  है ?
एक  उसी  कर्म  से ,
वो  'मजे ' लेता  है !
मुस्कुराता है,
जिंदगी  की  ख़ुशी  कहता  है !
वो  लांछन  पाती  है !
और  जान  गंवाती  है  !!
क्या  दोनों  ने  नहीं  खोया ?
ये  इसके  उसके  दिमाग  में
समाज  ने  कैसा  बीज  बोया ?
 
ये  दो  आयाम ,
द्वि अर्थी  संस्कार ,
कब , किसने , कैसे  बनाये ?
और  कैसे  जन  जन  की  आत्मा  में ,
इन्हें  इस  कदर  है  बसाये ?
एक  अनकहा   कानून ,
वो  अँधा  कानून ,
समाज  को  रौंद  रहा !
धरे  हाथ  पे  हाथ ,
खड़ा  मौन  मानव  रहा  !!

क्या  जो  लड़की  ख़ुदकुशी  कर गयी ,
उसका  भाई  आज  खुश  है  ?
उसका  पिता  आनंदित  है  ??
क्या  उसके  परिवार  में  कोई  पुरुष 
इस  दर्द  को  बिसरा  सकेगा ?
चाहे  पुरुष  हो  या  महिला 
उस  घर  हर  एक  दिल  में 
एक  अँधा  कुआँ  खुद  गया …
और  हमेशा  के  लिए
 वक़्त  जैसे  रुक  गया …

वो  खूबसूरत  दुनिया ,
वो  नादान  बचपन ,
जाने  कहाँ  खो  गया !
युवा  का  जहां ,
दो  हिस्सों  में  हो  गया !!

वो  बचाए  छिपती  है ,
वो  ढूढता  फिरता  है .
जाने  क्या  बेचती  है ?,
जाने  क्या  खरीदता  है !!
क्या  दोनों  नहीं  पाते?
या  दोनों  नहीं  खोते ?

फेरों  से  पहले  जो  खेल ,
उसे  ले  डूबता  है .
पहली  रात  के  बाद ,
वो  लजाई  आँखों  से ,
गुलाबी  गालों  से ,
सबको  बयां  होता  है !
तब  आखिर  क्या  खोया  था ?
अब  आखिर  क्या  मिल  गया ?

वो  जब  बड़े  हो  रहे  थे ,
काश  ऐसा  होता ,
न  उन्हें  गुमान  होता ,
कि   वह  ‘लड़की ’ है ,
कि  वह  ‘लड़का ’,
इस  जहां  में ,
बस  इंसान  बसता .
शायद  फिर ,
वो  हर  लड़के  में ,
सच्चे  प्यार  को  पाती ,
वो  हर  लड़की  को ,
मान , बहन , बेटी  या  दोस्त ,
कह  कर  आदर  देता .

न  कोई  लूटता , न  लुटता 
 हर  सफ़ेद , हर  काले  में .
बराबर  के  भागी  होते .
काश  के  हम 
थोड़े  ‘सामाजिक  ’ होते  !!
                           - मुखर

3 comments:

awesh said...

क्या खूब लिखा है कविता "हर सफ़ेद , हर काले में .बराबर के भागी होते"

Mukhar said...

dhanyawad Awesh Ji. mera likha sirf main hi nahi padhti hoon is baat ki khushi thi hi, upper se ye tareef! mera hausla duguna ho gaya.
Do pay visits to this page !
Thnaks.

Unknown said...

क्या लिखा है, कविता, कहाँ पर पहुँच गया है समाज, आज के हक़ीक़त का हु बहू चित्रण॰ काश के हम "थोड़े" सामाजिक होते, भई वाह॰