उसे 'कभी जिंदगी ... ' सीरियल का रामकपूर बहुत पसंद है। वो अक्सर सोचती है , ' इतने अच्छे इंसान की जिंदगी इतनी कष्टकर क्यों
होती है ? जाने अगली कड़ी में उसके साथ क्या होने वाला है ? असल जीवन में भी
तो यही होता है। मेरी खुद की जिंदगी कौन
सी खुशगवार है ?'
राधिका का रोज का
यही नियम हो गया है। रात आठ बजे तक बच्चों
को डिनर करा कर पढ़ने बैठा देती है। और खुद
टी वी ऑन करके बैठ जाती है। अरुण जल्दी आये
या देर से ,वो अपने सारे
सीरियल देख कर ही साढ़े नौ बजे तक उठती है।
तब तक बच्चे या तो शैतानी कर रहे होते हैं या फिर सो चुके होते हैं। अरुण कई बार उसे टोक चुका है , प्यार से समझा चुका है। मगर वो जानती है कि यह सब तो रोज का टंटा
है। आखिर कोई कब तक खटे !
कई बार अरुण ऑफिस
से लौटने के बाद सोते हुए बच्चों को पहले चादर ओढ़ाता है। रोटी सिकी हुई होती तो खुद ही खाना परोस लेता
और रोटी सिकी हुई नहीं होती तो पति पत्नी में जोरदार तू तू मैं मैं हो जाती।
'अरे जब सुबह का
खाना खा कर गए हुए हो तो दो और मिनट में क्या तुम्हारी जान निकल जाती है ? इतना ही है तो नीचे अपनी माँ को क्यों नहीं कह
देते ? क्या जिंदगी है
मेरी भी ! दो घडी टी वी जो देखने बैठ जाती
हूँ बुरा भला सुना देते हो ! दिनभर घर के काम और बच्चों ही से नहीं उभर पाती हूँ
ऊपर से तुम्हारी माँ की भी सुनती हूँ ! प्यार है ना इज़्ज़त है इस घर में !... और
उसका बड़बड़ाना जारी रहता है।
राधिका के जीवन में अगर कुछ थोडा सा बहलावा है
तो ये कोई तीन चार धारावाहिक। कहीं राम
कपूर, कहीं स्मृति
ईरानी तो कहीं बा की कहानी है। हर
केरेक्टर अपने अपने हिस्से के ग़म और दुःख को झेलता हुआ भविष्य के सुख के सपने
संजोय हुए है। ठीक उसी की तरह जैसे किसी
तरह अपने वजूद को कायम किये हुए कि कभी तो सवेरा होगा !
राम कपूर सोचता
है कि जिंदगी की सभी परेशानियों का हल ले कर कोई उसके सपनो की रानी ही आएगी जो
चाहे बेहद खूबसूरत न होगी मगर उसका घर और जीवन संभल जायेगा।
ऐसा ही स्मृति
ईरानी के साथ है। बचपन से हर प्रकार की
कमी में पली बढ़ी। पियक्कड़ बाप , अनपढ़ माँ
और चार बच्चों के लड़ते झगड़ते परिवार से मिले संस्कार। गाँव के रूढ़ि - रीतियों से बेजार। टी वी
में देखे पिक्चरों सा सजा भविष्य
का सपना ! बस शादी हो जाये तो जहन्नुम से छुटकारा मिले !
बा जो की बचपन ही
में ब्याहे जाने की वजह से कभी मुस्कुराने तक का वक़्त नहीं मिला। हमेशा कोल्हू के बैल की तरह चक्की में पिसती
हुई अक्खड़ बुद्धि, अधेड़ उम्र और
कसैली जुबान लिए बस एक बहु का इंतज़ार कर रही है कि अब मैं राज करूंगी !
तीनो सिरिअलों को
देखते हुए राधिका तीनों चरित्रों से भावनात्मक जुड़ाव महसूस करती है और उनकी जिंदगी
में बुरा करने वाले चरित्रों को टी वी ऑफ
करने के बाद तक कोसती रहती है। अपनी खुद
कि जिंदगी को मशीन की तरह जीती, कडवे घूँट की तरह पीती वह इन पात्रों
ही को जीती है। यहीं से उसे थोड़ी बहुत
उर्जा मिलती है।
कि एकबार उसने
देखा वो खुद टी वी के अन्दर है। सीरियल
में दिखाते घर की दीवारें बहुत कुछ अपनी
सी है। कि देखा वह स्मृति ईरानी है और
जिससे उसका ब्याह हुआ है वो और कोई नहीं राम कपूर ही है। और देखो, बा उसकी सास है। मगर तीनों चरित्रों की बढ़ी हुई अपेक्षाएं और खाली खाली मन किसी को कुछ
देने की स्थिति में नहीं है। बस लेना ही जानते हैं और नहीं मिलने पर मांग लेना फिर
छीन लेना जानते हैं। राम कपूर अब अच्छा
नहीं लगता है बिलकुल भी। उसकी शक्ल तक
अरुण जैसी लगने लगी है। उसकी डिमांड्स
बहुत ज्यादा है और दिल का एकदम रूखा। अपनी
जिंदगी से जुड़े हर शख्स के प्रति राधिका की अनगिनत जिम्मेदरियों के खेप ही राम के
दिल से पूरी नहीं होती। और बदले में प्यार
के दो बोल नहीं ... प्रवचन ही बस।
बा अपनी अक्खड़
बुद्धि और कसैली जुबान 'स्मृति ईरानी '
पर खुली छोड़ दी है और राज
करने के सारे पैंतरे आजमाए हुए है। इधर 'स्मृति ईरानी ' यानि राधिका खुद अपने बड़े बड़े सपनों को घिसते, टूटते
बिखरते देख रही है। पुरजोर हाथ
पांव मार रही है उन्हें बटोरने के, फिर से जोड़ने के मगर हाथ में से रेत सा कुछ फिसलता जाता है.
अब उसे ये अपना
सपनो का महल अपने पीहर के जहन्नुम से भी बदतर लगने लगा है। वो कभी उल्टियां कर रही
है कभी बुखार में तड़प रही है और कभी लगता है कि ये तमाम बीमारियाँ उसे है ही नहीं
बस वहम है। उसका दिमाग चक्कर खाने लगता है,
सारा बदन टूट रहा है। तभी
दूर से अरुण की आवाज आती है - ' माँ, उठो तुम घर जाओ.
नीचे रेसेप्श्म पर विपुल है तुम्हे घर छोड़ आएगा। मैं बैठ जाता हूँ राधिका के पास।
आज मैंने छुट्टी ले ली है ऑफिस से।
राधिका अधमुंदी
आँखों से देखती है कि वह अस्पताल के वार्ड में बिस्तर पर है। मांजी साथ में रखी
कुर्सी पर शायद सो रही थी बैठी बैठी। अरुण अब उसी के पास आ कर सिरहाने बैठ जाता है,
उसका माथा सहला रहा है।
पूछने पर बताता है कि परसों शाम ऑफिस से लौटने पर उसने राधिका को १०५ डिग्री बुखार
में पाया। उसी समय विपुल को बुला हस्पताल दौड़े।
मम्मी रात बच्चों के पास थी। सुबह घर का सारा काम निपटा, बच्चों को स्कूल भेज यहाँ आई तो अब तक यहीं
थी। कल बच्चों को मैं विपुल के घर छोड़ आया था भाभी के
पास। रात मम्मी रुकी हस्पताल में, मुझे अलाउड नहीं था ना !
अब कैसा लग रहा
है ?
राधिका
मुस्कुराना चाहती थी ! कमजोरी में शरीर ने साथ नहीं दिया। मगर अब उसे राम कपूर और
बा मिल गए थे। सच्ची में। टी वि से बाहर उसकी अपनी जिंदगी में। वो जानती थी कि इन्हें वो जी जान से चाहती
है। उसे भलीभांति पता है इन्हें जिंदगी से
क्या चाहिए। उसका बदला व्यवहार सभी की
कडवी स्मृतियों को बदल कर मीठा कर देगा।
अब उसकी अपनी जिंदगी मशीनी नहीं
रहेगी। अपने सपनों का महल किसी टी वी सीरियल से बेहतर न बना दे वो स्मृति ईरानी
... ओह्ह सॉरी ... राधिका नहीं !
अरुण ने देखा
उसकी राधिका के होठों पर हंसी खिलने को आतुर थी ...
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