Saturday, June 16, 2012


  ...मगर !
मैंने हमेशा से पढ़ा-
राजकुमार  को राज पाट मिला,
तख्तो ताज मिला ,
और शासन  को मिली प्रजा.
राजकुमारी को हरम मिला !
और मैंने जाना -
तुम्हारे आशीर्वाद में,
भैया को मिला कारोबार ,
और मुझे ढेर सा प्यार ,
कोरा कोरा दुलार !
कर्तव्यों में भी प्यार ,
अधिकार में भी प्यार ,
आज सब फिर मुझे क्यों कहते हैं -
तुम भावनाओ की पुतली हो?
भावनाओ के सिवा,
कब कुछ मुझे मिला?
तुमने तो मुझे
अपना नाम तक नहीं दिया !
और न माँ का ही नाम मिले
ऐसा कोई नियम किया !!
बिन नाम के मैं कहीं खो गयी
खुद को मिटा कर मैं जीती गयी..

जब काकी ने कहा -
सदा सुहागन रहो
मैं समझी आशीर्वाद मुझे मिला है
जब बुआ ने कहा -
फूलो फलो
मैं समझी मुझे आशीर्वाद मिला है ...

जब जिस घर में जन्म लिया
वहां हर लड़की परायी थी
या ब्याह के आई थी
या ब्याह के जानी थी...
जहाँ मैं ब्याही गयी
वहां भी यही हाल था...
जब जब उसने सेवा की
बदन पे थे कपडे गहने
और सामने थाल था...

तब मैं ना- समझ थी,
तब भी बाबुल तुम प्यारे थे .
आज मैं समझ गयी,
पढ़ लिख गयी ,
जान गयी अपने अधिकार .
और जान गयी-
मेरे साथ हुआ जो
सदियों से दोयम व्यवहार .

कागजों में पत्नी/पुत्री ...
(W/O ; D/O )
के कडवे घूँट मिलते हैं...
लड़की की कोई  कीमत  नहीं .
हाँ , दुल्हे जरूर बिकते हैं...

पिता ! क्यों नहीं मुझे
तुम इस नरक से बचा लेते हो?
क्यों सिर्फ मेरे भाई को ही
अपना वारिस बना लेते हो?

पता नहीं क्यों मगर ,
मैं मांगने से डरती हूँ .
कहीं अपना ही हिस्सा मांगने पर ,
आपका प्यार भरा हाथ...
सर से मेरे, सिकुड़ ना जाये...
और रिश्तों  में
नफरत भर जाये...
मैं जी रही हूँ  सदियों से
हंसती खेलती
भावनाओं से भरी..
सिर्फ प्यार के सहारे...

क्योंकि मैं आपसे पापा
बे-इन्तहा  प्यार करती हूँ !
                          -  मुखर






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