Thursday, October 18, 2018

मी टू - कहानी

“क्या हुआ ? थोबड़ा क्यों उतरा हुआ है ?”
“कुछ नहीं यार बस ऑफिस की पॉलिटिक्स!”
“ओss! चल हाथ मुंह धो ले , मैं चाय चढ़ा रही हूँ !”
एक तेरो बलमा रे एक ...म्म्म..ऊँऊँ ...माधवी गुनगुनाती हुई चाय छान रही थी .
“ऐसी भी क्या पॉलिटिक्स हो रही है ऑफिस में जो आज तेरा चहकना बंद है ? ” चाय पकड़ती हुई माधवी टेरेस के झूले पर बैठ गई . “मुझे तो कोई और बात लग रही है !”
ईला कप पकड़ी दूर डूबता सूरज देख रही थी. “एक्चुअली मैं मीटू के बारे में सोच रही थी.”
“हाँ यार ! बड़ों बड़ों की कुर्सी हिल गई !”
“सच कह रही हो . वो तनुश्री , कंगना , गज़ाला वहाब जैसी बड़ी बड़ी हस्तियाँ ही हिम्मत कर सकतीं हैं दुनिया के सामने यूँ लोगों का कच्चा चिठ्टा खोल कर रख देने की !” ईला जैसे अपने आप से बातें कर रही थी . माधवि कुछ कहने जा ही रही थी कि उसे माजरा कुछ अलग लगा. वह अपना कप ले ईला के पास पिलर से सट कर खड़ी हो गई .
“हम जैसों की कहाँ हिम्मत अपनी आप - बीती कहने की ! कहें भी तो किसको ?”
“फ़ेसबुक पर और किससे ?”
“तू कह पायेगी ?” सुन माधवी की आँखें फ़ैल गई . उन फैली आँखों में क्षण भर को चौंके दहशत को वह ईला से छुपा नहीं पाई .
किसी अपराध का पर्दाफाश मानने के बजाये लोग तो बदले की भावना और पब्लिसिटी स्टंट तक कहने से नहीं चूक रहे . बात औरत के खिलाफ हो तो ये सारे मर्द या तो सेंस ऑफ़ ह्यूमर ढूंढने लग जाते हैं या फिर उन्हें जात पात यद् आने लगता है . अब उसके क्रिश्चन होने की बात जाने क्यूँ उठ रही है ?
“औरत प्रश्न जो कर रही है ! पित्रसत्तात्मक समाज पर ऊँगली जो उठा रही है !”
“और औरत मिल जाये तो सब जात पात मिटटी में !”
“डर इस बात का है कि सफ़ेद कुरते पर दाग लग जायेगा. समाज में मुंह काला होने का डर है.”
“ देख ! ये सारी बातें बड़ी हैवी लगती हैं बट द थिंग इज गलत को पहली बार चिल्ला कर गलत कहने की इच्छा हो रही है .” 

 “मुझे लगता था कि मेरी बात कौन समझेगा, कौन मानेगा? आखिर कितनों के साथ ऐसा होता है ? सब तो मुझे ही दोष देंगे. मगर सोशल मिडिया की माने तो जाने कितनी ही जिंदगियां चूर चूर आत्मसम्मान के बोझ तले बदबूदार साँस ले कर मर मर जीने को मजबूर है.”
सूरज डूब चुका था परन्तु दोनों का घर के भीतर जाने का बिलकुल मूड नहीं था .वहीँ बिछे मैट पर लेट गए. तभी डोर बेल बजी .
“ये राधिका भी न !” ईला चिढ़ कर बोली. “जब तक दरवाजा न खोलो बेल बजाती ही जाएगी !”
“येएsss ! मुझे अपॉइंटमेंट लैटर मिल गया !” राधिका चहक रही थी . उसके हाथ के पेपर बैग से पनीर पेटीज और हनी चिली पोटैटो की खुशबू आ रही थी . सब वहीँ टेरेस पर बैठ कर पार्टी करने लगे.  
सबका मूड चीयर अप हो चूका था . हमेशा की तरह उनके बीच ‘ट्रुथ & डेयर’ खेल शुरू हो गया.
“अरी अब तो कुछ बचा भी नहीं सीक्रेट जो बताया जाये !” माधवी का मुँह बंद करती हुई राधिका ने इला की तरफ इशारा किया जो गंभीर मुद्रा में सर निचे किये हुए कुछ बोलने की तैयारी में थी ...
“कोई चौदह पंदह साल पहले की बात है. मैं अपने टू व्हीलर से ऑफिस जा रही थी . मेरी पहली नौकरी ही थी वह. कि दाहिनी और से कोई हाथ मेरे बाजु के नीचे से आ कर मेरे वक्ष को छू कर ....मैं जब तक संभालती वे लोग तेजी से बाइक भगा लिए. मैंने भी एक्सीलेटर फुल कर दिया और पीछा किया. आखिरकार हीरो पुक एक बाइक का कितने देर पीछा कर सकती थी. खैर, मैंने गाड़ी का नंबर तो अच्छे से याद कर लिया था. ऑफिस में शिवानी मैडम द्वारा देरी से आने का कारण पूछने पर वाकया बताया . मेरा चेहरा भी सब कुछ बयान कर ही रहा था. बहुत गुस्से में थी मैं . सारी कलीग्स भी आसपास जुट गई थीं . एकबारगी तो सभी को डर भी लगा तो गुस्सा भी आया . मैंने कहा, “आज हाफ डे लेकर सरदारपुरा थाने जाऊँगी , रिपोर्ट लिखाने.”
कोई ढाई बजे जब मैं थाने पहुँची तो वहां सारे कांस्टेबल जैसे ही बैठे थे शायद. मेरे घटना बताने पर उन्होंने मुझे पहले तो बताया कि गाडी का नंबर नोट कर लिया है , कार्यवाही हो जाएगी , तुम जाओ घर.
मैंने कहा कि मुझे कंप्लेंट लिखानी है. मेरे ज़िद्द पकड़ लेने पर उन्होंने मुझे समझाया कि ऍफ़ आई आर लिखाने से अगले दिन के अखबार में घटना और आपका नाम भी आएगा .
सुन कर एकबारगी तो चौंक गई . “क्यों ? अखबार में क्यों आएगा ?”
“मैडम , हिसाब तो ऐसा ही है .”
मुझे लगा शायद यही नियम है. “ठीक है, मुझे कंप्लेंट लिखानी है.”
“आप बैठो , अभी साहब नहीं हैं. एक-आध घंटे में आते होंगे.”
जब तक थाना अधिकारी आये मुझे पूरे दो घंटे हो गए थे इंतजार करते हुए. ऑफिस के भीतर जाते हुए उनकी निगाह मुझ पर पड़ी थी . थोड़ी देर बाद मुझे बुलाया गया. मैंने पट्टी पर नाम पढ़ा “महबूब खान” ! उन्होंने तफसील से मेरी पूरी बात सुनी और मुझे आश्वस्त किया कि मेरी बात बिलकुल सही है. बदमाश पर कार्यवाही होनी ही चाहिए. उन्होंने मुझे मेरी बहादुरी की भूरी भूरी प्रशंसा की. यह भी कहा कि मेरी जैसी सजग लड़कियों की ही वजह से समाज-सुधार संभव है और पुलिस को बड़ी मदद भी. मेरा गुस्सा अब तक शांत हो गया था. मैं मन ही मन सोच रही थी कि अधिकारी लोग ही समझदार और बहादुर तथा नियम पर चलने वाले होते हैं. ये कांस्टेबल सब काम-चोर कहीं के.
थाना अधिकारी महबूब खान ने मुझे यह कह कर रवाना किया कि जल्दी ही मुझे खबर करेंगे कार्यवाही के विषय में. और वो खबर कभी नहीं आई . थोड़े दिनों में मुझे अंदाजा लग गया कि मुझे बड़े आराम से फुसलाया गया. तब पता लगाया कि ऍफ़ आई आर की तो रशीद दी जाती है हाथों हाथ.
ऐसा नहीं है कि उस घटना ने मेरे आत्मविश्वास को डिगा दिया . हाँ मगर जहन में कहीं दबी सी एक टीस तो है कि क्या कारण हैं कि उस लड़के को ऐसा करने की न सिर्फ सूझी बल्कि उसने कर भी दिया ? क्या ख़ुद के कोई उसूल नहीं थे उसके? क्या वह ऐसा बुरा व्यक्ति ही पैदा हुआ था ? क्या उसे समाज का कानून का , बदनामी का , अपनी छवि का कोई दर भी नहीं ? क्यों उसकी छुवन मेरे लिए एक चोट थी और मुझे छूना उसके लिए मजा ?
इससे भी अधिक व्यथित करने वाली बात है हमारी सुरक्षा व्यवस्था का ढपोर-शंख होना ! बाईक का नंबर तक , लड़कों का हुलिया तक देना सब बेकार ? ऐसे नहीं तो वैसे मुझे समझा- बुझा कर घर ही भेज दिया न ? जब मुझे यही समझना-बूझना था कि इतनी सी बात को कोई तूल नहीं देना चाहिए बेफालतू में, तो फिर किस सामाजिक व्यवस्था ने मुखमें ये समझ भरी कि किसी के बदन को छूने की इच्छा तेरे में जागना तो दूर तुझे कोई छू भी जाए तो ज़िन्दगी भर खुद को कोसते रहना ?”
“डबल स्टैंडर्ड्स !” माधवी के मुँह से निकला.
राधिका उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए, “सच में यार ये दुर्व्यवहार हमें लाइफ टाइम कचोटते रहते हैं.”
“मैं इतना सोच पाई थी . वैभव से मन की बात शेयर भी कर पाई थी . और उसकी तरफ से मुझे संबल ही मिला हमेशा . इसीलिए समाज को मैंने हमेशा अपने ठेंगे पर रखा है . मन में कहीं कोई बोझ नहीं पाला कभी .
मगर आज ! आज जब मी टू का यह कैंपेन पूरी दुनिया में हलचल मचाता हुआ अपने देश पहुंचा तो सुकून मिला कि नहीं , अब लड़कियां नहीं सहन करेगी ...अब लड़कियां चुप नहीं रहेगी ....कि हाँ इलाज है इस महामारी का कि जिन संस्कारों से एक लड़की की परवरिश होती है , वही परवरिश लड़कों को भी मिले. तन –मन की सुचिता के सामान मानक हों ! मगर हमारा समाज तो इतना सड़ा हुआ है कि जो लड़कियां ऊँगली उठा रहीं हैं उन्हीं का मजाक बना रहा है ? कोर्ट में घसीट रहा है ? कहता है सबूत पेश करो ? क्या साबुत दूंगी मैं पंद्रह साल पहले की उस घटना की ? क्या बाइक नंबर अभी तक याद रखना चाहिए था मुझे ? और क्या वो नंबर ही काफ़ी होगा ?” 
ईला का आत्मसंवाद ख़त्म तो हो गया था परन्तु यह ट्रुथ एंड डेयर का खेल आज एक नए ही मोड़ पर आ खड़ा हुआ था . तीनों सखियाँ पुराने से समय में अपने ज़िन्दगी की सबसे खारी यादों के मकडजाल तक पहुँच गईं . माधवी का ह्रदय भी तो राधिका का भी दिल आँखों की बोली चीख रहा था - मी टू.
माधवी, जिसका कहना था कि सारे सीक्रेट्स तो बता दिए, आज सबसे ज्यादा सीक्रेट बात शेयर करने की जुर्रत करना चाहती थी . उसने कोक की बोतल खोली और मसनद का सहारा ले लिया.
“बात उन दिनों की है जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी . सक्सेना अंकल पापा के अच्छे दोस्त थे. उनकी बेटी, सीमा दीदी की शादी थी . सो हम लोग घर के सदस्य ही की तरह उनके यहाँ व्यस्त थे. सीमा दीदी की कोई ड्रेस अल्टरेशन के लिए दे रखा था.... उस समय  मालदा स्ट्रीट्स के तुलिका फैशंस से ड्रेस लेने सक्सेना अंकल के साथ सीमा दीदी ने मुझे भेज दिया . मैं मम्मी को बता उनके साथ निकल गई.
“सुबह से कुछ खाया है तुमने? भाई मुझे तो बड़ी भूख लगी है.” यह कहते हुए उन्होंने चेतक सर्किल के पास रेनबो रेस्टोरेंट्स पर कार पार्क कर दी.
“घर में इतनी भाग-दौड़ है कि चैन से बैठ कर खाना भी नसीब नहीं हो रहा !” हालाँकि मुझे उनकी बात अजीब लगी मगर हो सकता है वे सच में सुबह से कुछ खा नहीं पाए हों . एनिवेज , खाना खा का हम घर लौट रहे थे. उन्होंने कार में चल रहे गाने का वोल्यूम तेज कर दिया. उनके चेहरे के हावभाव मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहे थे . परन्तु मुझे ये भी नहीं आईडिया था कि मुझे कैसा फील हो रहा है . क्यों मैं इतना कुछ नोटिस कर रही हूँ. चार के सारे शीशे चढ़े हुए थे . शीशों पर फिल्म चढ़ी हुई थी. मैं कुछ अचकाचाई सी खुद को कम्फर्टेबल होने की कोशिश कर ही रही थी कि में उन्होंने मुझे किस करने की कोशिश की. आई वास अघास्ट ! विथ रेफ्लेक्सेस मैंने उन्हें धक्का देते हुए अपना मुंह घिन्न से फेर लिया . और चिल्ला पड़ी , ‘अभी कार रोको नहीं तो मैं चलती कार से कूद पडूँगी . वो कितना कुछ बोले , सॉरी भी बोले...मगर मैंने कार का दरवाजा खोल दिया. मैं जैसे अपने आप में नहीं थी . उन्होंने कार रोक दी और मैं उतर गई. मैंने ऑटो किया और घर आ गई. अपने बिस्तर पर पड कर मैं खूव खूब रोई. शाम को जब मम्मी आई तो मैंने उन्हें सब बातें बताई . पहले तो मम्मी ने मुझे डांटा कि मुझे उनके साथ रेस्तरां जाने की कहाँ जरुरत थी, यह भी कि मैंने ही कहा होगा. और फिर यह भी कहा कि यह सब भूल जाऊं . किसी को बताने से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला. बदनामी होगी सो अलग. “अब तुम बड़ी हो गई हो, ये अल्हड़पन छोड़ो ! ऐसी लड़की बनना ही क्यों जिसको ...”  
मुझे समझ में नहीं आया कि मेरी बदनामी होगी कि अंकल की ? मेरी यह भी समझ में नहीं आया कि मम्मी ने मुझे किसलिए डांटा . इसमें मेरी गलती क्या थी आखिर ? मेरा अल्हड़पन ? मैंने खुद ही पर शक करना शुरू कर दिया . बड़ी अजीब सी हो गई थी मैं उस दिन के बाद. उस घटना ने मेरे मन में मेरी मम्मी की कमजोर पर्सनालिटी की इमेज बना दी. और यह सोसाइटी के दोहरे नियम के कारन इसके प्रति विश्वास ही उठ गया. इसके बाद तो हर एक पुरुष को मैंने हमेशा शक्की निगाह से देखना शुरू कर दिया. सीमा दीदी अपने पापा को कितना रेस्पेक्ट करती थी, प्यार करती थी . उनको क्या पता कि उनके पापा कितने गंदे हैं ! मैं जब भी सक्सेना एंटी को देखती, उनके मुंह से अंकल की बढ़ाई सुनती तो लगता कि सब औरतें कितनी ग़लतफ़हमी में जीती हैं ! क्या इसका मतलब हम जिनके बारे में अच्छा अच्छा सोचते हैं वह सब एक तरफ़ा है ? क्या मुझे अपने घर परिवार पड़ोस के आदमियों पर आँख मूंद कर विश्वास नहीं करना चाहिए ? 
“तुम सही कह रही हो माधवी . मैं खुद कभी किसी आदमी पर विश्वास नहीं कर पाती . आदमी के हर शब्द , हर एक्ट पर हजार प्रशन मेरे मन में खड़े हो जाते हैं. कहीं उसका कोई और तो अर्थ नहीं था ? उसका क्या स्वार्थ हो सकता है इसमें ? वह मुझे मिस यूज़ कर रहा है क्या? मैं स्टुपिड हूँ, मुझे जरुर एकदिन यह बंदा धोखा देगा. ऐसा सोचते सोचते मैं कभी किसी भी मेन के प्रति अट्रेक्ट ही नहीं हो पाती. एक अच्छा दोस्त, टीचर, गाइड नहीं मान पाती . यह सब हमेशा से ऐसा नहीं था . पहले मैं अधिकतर सब पर ही विश्वास कर लेती थी. सोचती थी कि छुटपुट घटनाएँ छेड़छाड़ की तो होती ही रहती हैं और मैं अच्छे से हैंडल भी कर लेती हूँ . मेरी मम्मी तो कहती भी थी , “इसे तो हर कोई अच्छा इंसान ही लगता है ! किसी दिन जबरदस्त धोखा खाएगी.”
और वह दिन भी आया मेरी ज़िन्दगी में . तब हम पीतल फैक्ट्री के सामने वाली कॉलोनी में रहते थे. चिंकी के जन्म से पहले की बात है. उस दिन मेरे यहाँ सिलेंडर ख़त्म हो गया था. रवि कंप्यूटर्स की कोई डील करने दिल्ली गया हुआ था. तब मोबाइल फोन नए आये थे सो बस रवि के पास था. मैं नीचे मकान मालकिन के लैंड लाइन से रवि को फ़ोन मिलाया कि सिलेंडर ख़त्म हो गया है. आंटी ने मेरी बात सुन मुझे बोला कि उनके यहाँ डबल सिलिंडर हैं . उनका बेटा राकेश ऊपर पहुंचा आएगा. और वह एक घंटे बाद ही आया भी . सिलिंडर चेंज करते हुए वह मुझसे बड़े आराम से बातें कर रहा था . मुझे उसका हमारी लव मैरिज के बारे में पूछना कुछ अजीब सा लगा. लेकिन वही बात हैं न कि लड़कियों की तो हर छोटी छोटी बात पर शक करने की आदत होती है , यह सोच कर मैंने खुद को नार्मल ही रखा. परन्तु रसोई से निकलते हुए तो वह मुझे गले ही लगा लिया. मैंने उसे जोर का झटका दिया और कांपती हुई आवाज में कहा ,”निकल जाओ मेरे यहाँ से, अभी ! नहीं तो चिल्लाउंगी !”
साला गधा जाते-जाते बोलता है कि “रवि को मत बताना . पलीज़ !” मेरा गुस्सा तो सातवें आसमान पर चढ़ गया. रात रवि आया तो वह समझ गया कि कोई बहुत ही सिरिअस बात है. मैं तो सोच रही थी कि वह थका हारा आएगा, जाने डील कैसी हुई नहीं हुई आदि पूछ कर ही तसल्ली से हादसे के बारे में बताउँगी. परन्तु मेरा तो रोना ही छूट गया . रोते-रोते सारी बात बताते- बताते रवि पर ही सारा गुस्सा उतारा मैंने.
“उसको क्या लगता है लव मैरिज की है तो हर किसी को अवेलेबल होऊँगी ? अपनी बीवी के बारे में भी नहीं सोचा ? बेटी का बाप हो कर ? आदमी है या जानवर ? और क्या मतलब था उसका कि रवि को मत बताना ? मतलब रवि की नजरों से गिरना नहीं चाहता है वो... चाहे मेरी नजर में गिर जाये उसकी परवाह नहीं उसे ? हैं? रवि उस पर गुस्सा होगा...बात बढ़ेगी...बदनामी होगी ....! लेकिन मैं तो कुछ कर नहीं पाऊँगी न , राईट? या उसका यह मतलब था कि मैं अपनी पति की जागीर हूँ ...मेरी खुद की इच्छा मायने नहीं रखती ?
वो तो रवि की दिल्ली में अच्छी डील हुई थी कि जहाँ हमें अगले महीने मकान बदलना था हम अगले हफ्ते ही हम अपना ऑफिस स्टार्ट करने मानसरोवर में शिफ्ट हो गए. बट उस घटना ने मेरे मन में रिश्तों के लिए ...खास कर के पुरुषों के लिए शक की दिवार खड़ी कर दी . हमेशा के लिए. आई कैन नेवर बी कम्फर्टेबल विथ एनी मेन एवर ! यहाँ तक कि रवि के भी हर टच को टेस्ट करती हूँ.  इट्स नोट इजी नाव फॉर मी.”
तीनों सहेलियों ने आज खुद को एक दुसरे के कुछ और करीब पाया. बात चीत का दौर मद्धम पद गया था . भीतर से चादर ला वे तीनों वहीँ टेरेस के मेट पर ही एक दुसरे से चिपक कर सो गईं. अगले दिन नवमी की छुट्टी थी सो कोई जल्दी तो थी नहीं सुबह उठने की. भोर की ठंडक और बढती रौशनी में तीनों ने चादर कुछ और लपेट लिया था एक मीठी नींद और निकाल लेने को.
तभी नीचे से अखबार का रोल आकर जोर से लगा . पिलर के कंगूरे पर बैठा कबूतर भी फड़फड़ा कर उठा.
“क्या है यार यहाँ सोना तो ...” कहती हुई ईला की नजर जैसे ही अख़बार के हेड लाइन्स पर पड़ी वह चिल्ला पड़ी –
“हे गर्ल्स ! वेक अप ! सी ! उसने रिजाइन कर ही दिया आखिर !”
“हें ! सच्ची !!”
“रिजाइन तो करना ही पड़ता मैडम ! ये कोई चुनावी अजेंडा नहीं वर्ल्डवाइड औरतों की आवाज है जो अब चुप नहीं बैठेंगी !”
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Tuesday, October 9, 2018

"इज्ज़त" - ( प्रतिलिपि पर "कथा सम्मान प्रतियोगिता" में ) - Link has been updated.

गुड्डे गुड़ियों के खेल हो या छोटे- छोटे खिलौने वाले बर्तन लेकर रसोई-रसोई,सरोज को कभी नहीं भाते थे . वह तो जब देखो तब दौड़ कर पिताजी के पास खेतों में पहुँच जाती , लपक कर अमरुद या आम के पेड़ पर चढ़ जाती , दूर से ढेला फेंक खेत चुगती चिड़िया उड़ाती या फिर छोटे भाई महेश के पतंग की गिट्टी पकड़ते- पकड़ते फिर पतंग ही उड़ाने लगती . अभी उम्र ही क्या थी सो दद्दू और पिताजी उसकी हरकतों पे हंस लेते थे . मगर गाँव भर की औरतें रूप -रंग की तारीफ करती- करती कब उपालंभ भरी चिकौटी काटती कि सरोज की अम्मा बिलबिला जाती .

“ तेरहवीं में लग गई तू , अब ये लहंगा कमीज के संग दुपट्टा ही डाल लिया कर !लड़कों के स्कूल जाती है, जरा लोक- लाज का लिहाज कर !”

“हाँ हाँ” करती नटखट सरोज पिताजी और दद्दू का टिफ़िन उठा ये चली वो चली !”

“अरी किधर चली ? खाना महेश दे आएगा , तू जरा मेरे संग मसाले कुटवा ले ! या छोरी तो सुनअ ही कोनी !”

सत्रह की होते- होते तो सरोज खेत का सारा काम सँभालने लगी थी . ट्रेक्टर से रुड़ाई- गुड़ाई, फसलों की कटाई और बंधाई , गाय बैलों का चारा- सानी , दूध दुहना...क्या नहीं करती ! हाँ , रसोई में कभी नहीं बड़ती !खाना जीम कर थाली एक तरफ सरका देती ! पढाई में भी कम होशियार नहीं थी . दसवीं की परीक्षा के बाद प्रधानध्यापक खुद आए थे सरोज के पिताजी से मिलने . “ बहुत अच्छे नंबरों से पास हुई है आपकी बिटिया , आगे की पढाई के लिए क्या सोचा ? मेरी मानो तो कोई डॉक्टर-इंजिनियर से कम न है अपनी सरोज !”

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