मुझे मेरे सारे
दोस्त
मुझ-से ही लगते
हैं।
हाँ, नाम से उन्हें लोग
विभिन्न मजहब का
कहते हैं.
जब जॉन की
ग्रांडमोम ,
जलते चर्च में रह
गई थी.
सुबक सुबक कर
मैं तक रोइ थी !
शहनाज के भाईजान
जब
सऊदी से बेजान ही
लौटे थे।
घरवालों को ढांढस
कैसे बंधाया ?
कई रात फिर हम न सोये थे।
याद है सन चौरासी
के वो दिन ,
दिल्ली गुरमीत के घर तहखाने में रहना।
जमकर पत्ते,
कैरम, पिक्चर
और छक कर राजमा
चावल खाना !
मैं ? मुझे मेरे अज़ीज दोस्तों ने,
दसवीं कॉलेज तक पढ़ाया।
दलित के कोटे से फिर ,
दमदार नौकरी
दिलवाया।
अब हम चारों भाई
बहन ,
हर संस्कृति को
जीते हैं।
हमारे मजहब प्यार
मोहब्बत ,
बाकी सबके रीते हैं !
हम चारों को
देखकर अक्सर
मेरे पापा कहते
हैं -
अब मरने का खौफ किसे ,
जब चार मज़बूत
कन्धे होते हैं !
--------------------------------मुखर