Saturday, April 4, 2015

मजहब



मुझे मेरे सारे दोस्त
मुझ-से ही लगते हैं।
हाँ, नाम से उन्हें लोग
विभिन्न मजहब का कहते हैं.

जब जॉन की ग्रांडमोम ,
जलते चर्च में रह गई थी.
सुबक सुबक कर
मैं  तक रोइ थी !

शहनाज के भाईजान जब
सऊदी से बेजान ही लौटे थे।
घरवालों को ढांढस कैसे बंधाया ?
कई रात  फिर हम न सोये थे।

याद है सन चौरासी के वो दिन ,
दिल्ली  गुरमीत के घर तहखाने में रहना।
जमकर पत्ते, कैरम, पिक्चर
और छक कर राजमा चावल  खाना !

मैं ? मुझे मेरे अज़ीज दोस्तों ने,
दसवीं  कॉलेज तक पढ़ाया।
दलित  के कोटे से फिर ,
दमदार नौकरी दिलवाया। 

अब हम चारों भाई बहन ,
हर संस्कृति को जीते हैं।
हमारे मजहब प्यार मोहब्बत ,
बाकी सबके  रीते हैं !

हम चारों को देखकर अक्सर
मेरे पापा कहते हैं -
अब मरने का  खौफ किसे ,
जब चार मज़बूत कन्धे होते हैं !
--------------------------------मुखर