Friday, October 25, 2013

जब तुम चली जाती हो न तो...तो ये लहरें संगीत नहीं सुनाती, शोर करती हैं...दर्दभरा शोर...

" पहलू..."https://www.facebook.com/kavita.singh.332

' अच्छा सुनो, आज तुम्हे मैं एक बात बताऊँ..."
'नहीं सुननी तुम्हारी कोई बात. कोरी कल्पना है तुम्हारी बातें. बस थोड़ी देर को राहत मिलती है...तुम्हारे चले जाने के बाद यथार्त वैसा ही खारा...'
अरे ! फिर वही ! तो यों ही खींचे चले आतें है लोग तुम्हारे पास ? '
पर ! किसी की प्यास बुझा पाया हूँ मैं आज तक ?
ओफ्फो ! तुम्हे समझाना बिलकुल बेकार. वो कहावत सुनी है न...
हाँ हाँ, भैंस के आगे बीन...
हहहहाहा...तो तुम्हे कंठस्थ हो गए हैं मेरे डायलोग ? मगर मैं वो बात नहीं कह..
तो फिर ?'
इतना विशाल सीना है तुम्हारा. सोचा थोडा दिमाग भी होगा सर में. मगर तुम तो एक बात पकड़ कर यों बैठ गए हो जैसे गिलास का दसवां हिस्सा भी खाली है तो आखिर खाली ही है ! '
रहने दो तुम्हारी फीलोसोफि ! आज मूड नहीं है. वो बताओ जो तुम बताने आई थी.
मूड नहीं है तो रहने दो. तुम्हे समझ नहीं आएगी. वैसे भी मेरी सारी ही बातें फिलोसोफिकल होती है.
अच्छा बाबा ठीक है, बताओ. वैसे भी तुम ज्यादा देर तो चुप रह नहीं सकती. चुप बैठी तो चले जाने की जिद करोगी. और पता है, जब तुम चली जाती हो न तो...तो ये लहरें संगीत नहीं सुनाती, शोर करती हैं...दर्दभरा शोर...
अच्छा तो सुनो, वो जो पौधा मैं बता रही थी न कि एकदम सूख गया...मर ही गया...उसे
चलो तुमने उसे निकल कर फेंक दिया. अब नया पौधा लगा सकोगी वहां..
अरे नहीं, आज मैं उसे निकालने ही को झुकी थी कि उसकी सूखी डंठल में कोमल सी हलकी गुलाबी सी २-३ कोंपलें दिखी...
अरे वाह ! क्या बात है !
हाँ, और मैं उसे निहारती वहीँ बैठ गयी तो उस शाख ने मुझे एक राज की बात बताई.
राज की बात ?
हाँ. उसने बताया की जब उस पौधे को एक जगह से उखाड कर दूसरी जगह लगाया गया, तो उसके लिए समय बहुत कष्टकर था...लगभग दुसरे जीवन सा. फिर मैं ८ दिनों की छुट्टी पर चली गयी तो उसकी  देखभाल नही हो सकी. जब मैं लौटी तो उसे मरणासन्न पर पाया. मैंने बहुत देखभाल की मगर फिर शायद उसके सितारे ही गर्दिश में थे कि गर्मी ने हद कर दी और उसकी सांस उखाड़ने लगी.
फिर?
मैंने भी आँखों में आंसू भर कर मौन ही उससे यही पूछा. उसने बताया उसने अपनी सारी जान पत्तियों, काँटों, गांठों व शाखों से समेट कर नीचे जड़ के अंतर्मन से भी अंदर आत्मा में कहीं छुपा ली. और सब कुछ ईश्वर पर छोड़ एक ही प्रार्थना की.
क्या प्रार्थना की ?
कि ये मुखर बेहद प्रेम करती है मुझसे. मुझसे ज्यादा मेरी जान उसे प्यारी है. उसके लिए मुझे फिर जीवन दान देना हे प्रभु !
सही कहा उसने.
क्या खाक सही कहा ? मुझसे ज्यादा कोई और प्रेम करता था उसे. यह बात आगे की कहानी में मुझे हवा ने बताई.
हवा ने ? क्या बताया हवा ने ?
कि कोई है जिसने कभी इसे देखा भी नहीं...मगर इसके जीवन के लिए भारी तप कर अपना वजूद मिटा अपनी प्रकृति ही बदल डाली. और सात समुंदर पार से आ कर आसमान के रस्ते अमृत का बूँद बनकर रिमझिम संगीत बन उस पौधे की आत्मा के कान में प्राण फूंक आया...आया कुछ समझ ?
आया !
क्या खाक समझ आया ? वो और कोई नहीं तुम ही हो. वो मीठा मन तुम्हारा ही तो है. यहाँ किसी की प्यास नहीं बुझा पाता का दर्द लिए बैठे हो खरा हूँ कहते हो जरा अपने ह्रदय में झाँक कर देखो ! पता है सारी धरती पर जीवन तुम्ही से है !
क्या सच ?
हाँ, मुच !
हहाहाहा ...
अरे भिगोवोगे क्या मुझे...
ये लहरें बाहें बन कर तुम्हे..
उसके पहले मैं चली...
और समंदर ने देखा वो चाँद बनकर किसी खिड़की के रस्ते किसी कमरे में उतर गयी गहरे नींद में. और उसके खुद के सीने पर मछुवारे उतर आये थे भोर की बेला में....

-----------------------मुखर !