Monday, December 17, 2012


 पहली कुल्हाड़ी !
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वो इन चौराहों पर अरसे से
अपने बटुए करती आई है खाली
मगर ये फैलते हाथ
रक्तबीज से बढ़ते ही जाते हैं !

एक अजीब सी घुटन ने  
कार का शीशा चढ़ा लिया.
आज उसे मखमली बिस्तर पर
हमेशा की सहेली नींद नहीं मिली,
जो इस भाव में अकसर साथ रहती थी
कि आज फिर एक मुंह को निवाला मिला.
उसके  दर्द ने आँखों की राह ली
और कागज पर ढुलक गए.
लोग कहते है -
तुम कवितायेँ अच्छा लिखती हो !
सुन कर जाने उसने क्या तो गटक लिया.
 जाने क्या था जो हलक में अटक गया.

लाल बत्ती पर
भूख और मौत रचते हैं व्यूह !
दौड़ती भागती गाड़ियों में
पल भर को पसीजते दिल.
और वो पसरते हाथ
जिंदगी और मौत से गाफिल !

ये जो चार पैसे देती हो तुम
गरीबी की जड़ सींचती हो तुम !
जिस दिन वो बच्चा
हाथ फ़ैलाने में हिचकिचाएगा,
मांग के खाने में शर्मायेगा,
उस दिन गरीबी पर पड़ेगी
पहली  कुल्हाड़ी !

गरीबी दम तोडती है -
आत्म सम्मान कि चौखट पर !
आँखों में स्व- सम्मान ही न हुआ
तो किसीका भी सम्मान  कैसा ?
सम्मान नहीं तो प्यार कैसा ?
एक कुचक्र को जन्म देती
हमारे  कोमल भावुक कृत !
उन्हें पैसा नहीं, प्यार देना है .
प्यार से पहले सम्मान देना है .
सम्मान से पहले आत्म - सम्मान !
                             - मुखर .
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