Friday, July 27, 2012
"मेरा तोहफा? - 'स्त्री-मान'"
सावन का महिना है. भले ही इस बार सावन सूखा सूखा है. मगर लहरिया पहिने हर महिला रिम झिम फुहार सी चंचल हो चली है.
सबका एक ही नाम हुआ जाता है - 'बहन' ! दौड़ लगी है बाज़ार में झम झम. दुकाने भी सज धज गयी है चमाचम्. खुशदिल माहौल है .
आने वाली पूनम को राखी जो है भई ! मैं भी आँखें मूँद कर  उस पावन दिन की रौनक में खो जाना चाहती हूँ...
बागों में, बाज़ारों में, घरों में गलियों सडकों पे सिनेमा हॉल में जहाँ देखो वहां कोई मरदाना कलाई सूनी नहीं है आज.
सभी किसी न किसी के गर्विले  भाई हैं. सबके पेशानी पर बहन के हाथ का सजा तिलक लहक रहा है.
चेहरे का तेज बता रहा है की वे अपनी बहन के मान सम्मान के ताउम्र रक्षक हैं.
तभी ख़याल कौंध जाता है पिछले वर्ष में अखबार में छपी इतनी ख़बरों में अपने देश कि स्त्रियों पर होते अत्याचार करने वाले कौन मर्द थे ?
कि किसी गैर स्त्री को देख कर इन्ही मर्दों के अंदर का वो तेज, वो गर्व, वो रक्षक वो भाई क्या मर जाता है ?
या डरावना हो जाता है या डरपोक हो जाता है ?
                                                                                            - एक बहन ( मगर एक स्त्री पहले)
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